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बसन्त पंचमी 10 फरवरी विशेष

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बसन्त पंचमी 10 फरवरी विशेष 〰️〰️

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www.futurestudyonline.com
posted Feb 10, 2019 by Rakesh Periwal

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दुर्गा सप्तशती पाठ में रखें 10 बातों का विशेष ध्यान...

देवी आराधना हेतु दुर्गा सप्तशती पाठ का विशेष महत्व है। परंतु विशेष फल प्राप्ति के लिए इसका पाठ विधि-विधान और नियम के साथ किया जाना आवश्यक है।

1 किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश पूजन का विधान है। अत: सप्तशती पाठ से पूर्व भी इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। अगर कलश स्थापना की गई है तो कलश पूजन, नवग्रह पूजन एवं ज्योति पूजन किया जाना आवश्यक है।

2 सप्तशती पाठ से पूर्व श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को शुद्ध आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें। और इसका विधि पूर्वक कुंकुम,चावल और पुष्प से पूजन करें। तत्पश्चात स्वयं अपने माथे पर भस्म, चंदन या रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए 4 बार आचमन करें।  

3 श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ में कवच, अर्गला और कीलक स्तोत्र के पाठ से पहले शापोद्धार करना जरूरी है। दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र, ब्रह्मा, वशिष्ठ और  विश्वामित्र जी द्वारा शापित किया गया है। अत: शापोद्धार के बिना इसका सही प्रतिफल प्राप्त नहीं होता।  

4 यदि एक दिन में पूरा पाठ न किया जा सके, तो पहले दिन केवल मध्यम चरित्र का पाठ करें और दूसरे दिन शेष 2 चरित्र का पाठ करें। या फिर दूसरा विकल्प यह है कि एक, दो, एक चार, दो एक और दो अध्यायों को क्रम से सात दिन में पूरा करें।   

5  श्रीदुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का नित्य पाठ करने से वाक सिद्धि और मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है, परंतु इसे पूरे विधान के साथ किया जाना आवश्यक है।  

6 श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र ''ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे'' का पाठ करना अनिवार्य है। इस नर्वाण मंत्र का विशेष महत्व है। इस एक मंत्र में ऊंकार, मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और मां काली के बीजमंत्र निहित हैं।  

7 अगर श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ संस्कृत में करना कठि‍न लगता हो और आप इसे पढ़ने में असमर्थ हों तो हिन्दी में ही सरलता से इसका पाठ करें। हिन्दी में पढ़ते हुए आप इसका अर्थ आसानी से समझ पाएंगे।  

8 श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय यह विशेष ध्यान रखें कि पाठ स्पष्ट उच्चारण में करें, लेकिन जो़र से न पढ़ें और उतावले भी न हों। शारदीय नवरात्र में मां अपने उग्र स्वरूप में होती है। अत: विनयपूर्वक उनकी आराधना करें। नित्य पाठ के बाद कन्या पूजन करना अनिवार्य है।  

9 श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ में कवच, अर्गला, कीलक और तीन रहस्यों को भी सम्मिलत करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद क्षमा प्रार्थना अवश्य करना चा हिए, ताकि अनजाने में आपके द्वारा हुए अपराध सेमुक्ति मिल सके।  

10 श्रीदुर्गा सप्तशती के प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र का क्रम से पाठ करने से, सभी मनोकामना पूरी होती है। इसे महाविद्या क्रम कहते हैं। दुर्गा सप्तशती के उत्तर,प्रथम और मध्य चरित्र के क्रमानुसार पाठ करने से, शत्रुनाश और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसे महातंत्री क्रम कहते हैं। देवी पुराण में प्रात:काल पूजन और प्रात में विसर्जन करने को कहा गया है।   

Arvind Shukla ..8571064245

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*राशि अनुसार करें दुर्गा सप्तशती के पाठ, पूरी होगी मनोकामना* *यदि आप अपनी राशि के अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तो निश्चय ही आपकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी* *मां शक्ति की आराधना करने वालों के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अनिवार्य माना जाता है। समय की कमी के चलते सप्तशती के पूरे पाठ को सभी लोग नहीं कर सकते। ऎसे में यदि आप अपनी राशि अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तो निश्चय ही आपकी भौतिक, दैहिक और आध्यात्मिक इच्छाएं पूरी होंगी।* *मेष (Aries): इस राशि वाले मंगल प्रधान होते हैं। इनमें क्रोध की अधिकता रहती है। इन्हें दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का पाठ करना चाहिए।* *वृष (Taurus): शुक्र ग्रह की प्रधानता होने से वृष राशि वाले अत्यन्त भावुक होते हैं। इन्हें कोई भी इमोशनल कर कुछ भी करवा सकता है। वृष राशि वालों को दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए।* *मिथुन (Gemini): इस राशि के व्यक्ति बुध ग्रह के असर में रहते हैं। बुध के प्रभाव से ही इनकी वाणी से दूसरे लोग जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। इन्हें दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए।* *कर्क (Cancer): कर्क राशि के व्यक्ति चन्द्रमा प्रधान होते हैं। इसी कारण वह मानसिक रूप से उद्वेलित रहते हैं। इन्हें दुर्गा सप्तशती के पांचवे अध्याय का विधिवत पाठ करना चाहिए जिससे भाग्य के बंद द्वार भी खुल जाते हैं।* *सिंह (Leo): सूर्य प्रधान होने के कारण आप अन्य लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल होते हैं। फिर भी कई बार न चाहते हुए भी आप अनिश्चितता का शिकार हो जाते हैं। आपके लिए दुर्गा सप्तशती के तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए।* *कन्या (Virgo): बुध प्रधान होने से आप अत्यधिक बुदि्धमान है परन्तु सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाने की क्षमता आपके भाग्य को दबा देती है। इसके लिए आपको दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का विधिवत पाठ करना चाहिए।* *तुला (Libra): शुक्र प्रधान होने से आपमें काम-भावना की प्रबलता रहती है। इसे कम करने और शुक्र ग्रह के अनुकूल प्रभावों को प्राप्त करने के लिए तुला राशि वालों को दुर्गा सप्तशती के छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए।* *वृश्चिक (Scorpio): मंगल प्रधान होने से आपका स्वभाव रूखा-सूखा व क्रोधी होता है। दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय का पाठ आपके स्वभाव को अनुकूल बना कर बंद भाग्य के दरवाजे खोलता है।* *धनु (Sagittarius): इस राशि वाले व्यक्ति गुरू ग्रह से प्रभावित होते हैं। इन्हें दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।* *मकर (Capricorn): शनि प्रधान होने से मकर राशि वाले न्याय के लिए लड़ने को हमेशा तैयार रहते हैं। ऎसे में इनके विरोधियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती रहती है, इन्हें दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय का विधिवत पाठ करना शनि से मनवांछित फल की प्राप्ति कराता है।* *कुंभ (Aquarius): शनि से प्रभावित होने के कारण कुंभ राशि वालों का भाग्य हमेशा अधर-झूल में झूलता रहता है। दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करने से इन्हें जीवन में सुख-समृदि्ध प्राप्त होती है।* *मीन (Pisces): गुरू प्रधान होने के कारण मीन राशि वाले यूं तो हर समस्या से पार पा ही लेते हैं फिर भी भौतिक सुख-समुदि्ध से दूर रहते हैं। दुर्गा सप्तशती के नौवें अध्याय का पाठ करने से उनकी भौतिक और आध्यात्मिक इच्छाएं पूरी होती है।*
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कैसे करें दुर्गा-सप्‍तशती का पाठ

देवी स्‍थापना – कलश स्‍थापना

दुर्गा सप्‍तशती एक महान तंत्र ग्रंथ के रूप में उपल्‍बध जाग्रत शास्‍त्र है। इसलिए दुर्गा सप्‍तशती के पाठ को बहुत ही सावधानीपूर्वक सभी जरूरी नियमों व विधि का पालन करते हुए ही करना चाहिए क्‍योंकि यदि इस पाठ को सही विधि से व बिल्‍कुल सही तरीके से किया जाए, तो मनचाही इच्‍छा भी नवरात्रि के नौ दिनों में ही जरूर पूरी हो जाती है, लेकिन यदि नियमों व विधि का उल्‍लंघन किया जाए, तो दुर्घटनाओं के रूप में भयंकर परिणाम भी भोगने पडते हैं और ये दुर्घटनाऐं भी नवरात्रि के नौ दिनों में ही घटित होती हैं।

इसलिए किसी अन्‍य देवी-देवता की पूजा-आराधना में भले ही आप विधि व नियमों पर अधिक ध्‍यान न देते हों, लेकिन यदि आप नवरात्रि में दुर्गा पाठ कर रहे हैं, तो पूर्ण सावधानी बरतना व विधि का पूर्णरूपेण पालन करना जरूरी है।

दुर्गा-सप्‍तशती पाठ शुरू करते समय सर्व प्रथम पवित्र स्थान (नदी किनारे की मिट्टी) की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। हमारे द्वारा किया गया दुर्गा पाठ किस मात्रा में और कैसे स्‍वीकार हुआ, इस बात का पता इन जौ या गेंहू के अंकुरित होकर बडे होने के अनुसार लगाया जाता है। यानी यदि जौ/गेहूं बहुत ही तेजी से अंकुरित होकर बडे हों, तो ये इसी बात का संकेत है कि हमारा दुर्गा पाठ स्‍वीकार्य है जबकि यदि ये जौ/गेहूं अंकुरित न हों, अथवा बहुत धीमी गति से बढें, तो तो ये इसी बात की और इशारा होता है कि हमसे दुर्गा पाठ में कहीं कोई गलती हो रही है।
फिर उसके ऊपर कलश को पंचोपचार विधि से स्थापित करें।
कलश के ऊपर मूर्ति की भी पंचोपचार विधि से प्रतिष्ठा करें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके दोनों ओर त्रिशूल बनाकर दुर्गाजी का चित्र, पुस्तक तथा शालीग्राम को विराजित कर विष्णु का पूजन करें।
पूजन सात्विक होना चाहिए क्‍योंकि सात्विक पूजन का अधिक महत्‍व है। जबकि कुछ स्‍थानों पर असात्विक पूजन भी किया जाता है जिसके अन्‍तर्गत शराब, मांस-मदिरा आदि का प्रयोग किया जाता है।
फिर नवरात्र-व्रत के आरंभ में स्वस्ति वाचक शांति पाठ कर हाथ की अंजुली में जल लेकर दुर्गा पाठ प्रारम्‍भ करने का संकल्प करें।
फिर सर्वप्रथम भगवान गणपति की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का विधि से पूजन करें।
फिर प्रधानदेवी दुर्गा माँ का षोड़शोपचार पूजन करें।
फिर अपने ईष्टदेव का पूजन करें। पूजन वेद विधि या संप्रदाय निर्दिष्ट विधि से होना चाहिए।
दुर्गा-सप्‍तशती पाठ विधि

विभन्‍न भारतीय धर्म-शास्‍त्रों के अनुसार दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करने की कई विधियां बताई गर्इ हैं, जिनमें से दो सर्वाधिक प्रचलित विधियाें का वर्णन निम्‍नानुसार है:

इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि द्वारा पाठ करते हैं। यानी इस विधि में केवल पाठ किया जाता है, पाठ करने के बाद उसकी समाप्ति पर हवन आदि नहीं किया जाता।

इस विधि में एक ब्राह्मण सप्तशती का आधा पाठ करता है। (जिसका अर्थ है- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे अध्याय में ‘देवा उचुः- नमो दैव्ये महादेव्यै’ से आरंभ कर ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण पाठ की पूर्णता मानी जाती है। जबकि एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है।

पाठ करने की दूसरी विधि अत्यंत सरल मानी गई है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ (प्रथम अध्याय), दूसरे दिन दो पाठ (द्वितीय व तृतीय अध्याय), तीसरे दिन एक पाठ (चतुर्थ अध्याय), चौथे दिन चार पाठ (पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय), पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ (नवम व दशम अध्याय), छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ (द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय) करने पर सप्तशती की एक आवृति होती है। इस विधि में आंठवे दिन हवन तथा नवें दिन पूर्णाहुति किया जाता है।

अगर आप एक ही बार में पूरा पाठ नही कर सकते है, तो आप त्रिकाल संध्‍या के रूप में भी पाठ को तीन हिस्‍सों में वि‍भाजित करके कर सकते है।

चूंकि ये विधियां अपने स्‍तर पर पूर्ण सावधानी के साथ करने पर भी गलतियां हो जाने की सम्‍भावना रहती है, इसलिए बेहतर यही है कि ये काम आप किसी कुशल ब्राम्‍हण से करवाऐं।

Arvind Shukla .8571064245

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  इन मंत्रो का कम से कम 11, 21, 51अथवा 108 बार रोज जाप करने से उस व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। 1 *आपत्त्ति से निकलने के लिए* शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥ 2 *भय का नाश करने के लिए* सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते । भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥ 3 *जीवन के पापो को नाश करने के लिये* हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् । सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥ 4 *बीमारी महामारी से बचाव के लिए* रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥ 5 *पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए* देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ 6 *इच्छित फल प्राप्ति* एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः 7 *महामारी के नाश के लिए* ॐ जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥ 8 *शक्ति और बल प्राप्ति के लिये* सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि । गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥ 9 *इच्छित पति प्राप्ति के लिये* ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥ 10 *इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये* पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥॥! 11 *हर मंगल कार्य हेतु* सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।.. 12 *बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए* सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्यों मत्प्रसादेन भव‍िष्यंति न संशय॥ 13 *आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति* देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ मां दुर्गा सबके कष्टों का हरण करती है। इससे घर मे परिवारिक कलह दूर व साधक को सुख और शांति मिलती है।
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शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों में भक्त मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते है. नवरात्रि में देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व है. इन नौ दिनों में भक्तों नियमों के साथ मां की पूजा करते हैं. इसबार अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन पड़ेगी, जिसके कारण नवरात्र में देवी आराधना के लिए पूरे 9 दिन मिलेंगे. प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है. कलश स्थापना या कोई भी शुभ कार्य शुभ समय एवं तिथि में किया जाना शुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाना अत्यावश्यक है. नवरात्र के 9 दिनों में मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है और हर स्वरूप सौभाग्य का प्रतीक होता है. इन शुभ दिनों में मां की हर रोज पूजा की जाती है और ज्यादातर लोग 9 दिन का व्रत भी रखते हैं. वैसे तो मां को श्रद्धा भाव से लगाए गए हर भोग को ग्रहण करती हैं लेकिन नवरात्र के दिनों में मां के हर स्वरूप का अलग भोग लगता है. कलश स्था‍पना की तिथि और शुभ मुहूर्त कलश स्था‍पना की तिथि: 17 अक्टूबर 2020 कलश स्था‍पना का शुभ मुहूर्त: 17 अक्टूबर 2020 को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से 10 बजकर 12 मिनट तक। कुल अवधि: 03 घंटे 49 मिनट अभिजीत मुहूर्त सभी शुभ कार्यों के लिए अति उत्तम होता है। जो मध्यान्ह 11:43 से 12:29 तक होगा। शुभ का चौघड़िया सुबह 07:49 से 09:14 तक होगा जिसने कलश स्थापना की जा सकती है स्थिर लग्न कुम्भ दोपहर 2:30 से 3:55 तक होगा, साथ ही शुभ चौघड़िया भी इस समय प्राप्त होगी, अतः यह अवधि कलश स्थापना हेतु अतिउत्तम है। जानिए कैसे करें नवरात्रि पर कलश पूजन सभी प्राचीन ग्रंथों में पूजन के समय कलश स्थापना का विशेष महत्व बताया गया है. सभी मांगलिक कार्यों में कलश अनिवार्य पात्र है. दुर्गा पूजन में कलश की स्थापना करने के लिए कलश पर रोली से स्वास्तिक और त्रिशूल अंकित करना चाहिए और फिर कलश के गले पर मौली लपेट दें. जिस स्थान पर कलश स्थापित किया जाता है पहले उस स्थान पर रोली और कुमकुम से अष्टदल कमल बनाकर पृथ्वी का स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- ओम भूरसि रस्यादितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धात्रीं। पृथिवीं यच्छ पृथिवी दृह पृथ्वीं माहिसीः।। ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्तिवन्दवः। पुनरूर्जानि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
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