top button
    Futurestudyonline Community

बुध ग्रह और नीम के पेड़ का संयोग

0 votes
1,951 views
बुध ग्रह और नीम के पेड़ का संयोग आज बताता हूँ।की नीम के पेड़ से हम अपनी बुद्ध ग्रह जनित परेशानियों को दूर कर सकते है। बुध के स्थान बली होने पर जातक को बौद्धिकता की प्राप्ति होती है वह विचारों से शील होता है तथा हंसमुख स्वभाव का होता है. मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. उच्च पद व अधिकारों की प्राप्ति होती है. जातक धैर्यवान व उत्साही होता है. तर्क वितर्क करने में अग्रसर रहता है तथा अपने मत को सदैव आगे बढ़कर प्रस्तुत करने की चाह रखता है. स्थान बल से हीन होने पर जातक स्त्री व संतान की चिंता से ग्रस्त रह सकता है. बुद्धि कुतर्क में अधिक लग सकती है. समझ में कंइ आ सकती है. उचित-अनुचित का बोध नहीं कर पाता है. स्थान से दूर जाकर काम करता है अथवा पद से अवनती भी झेलनी पड़ सकती है।अगर बुध ग्रह खराब हुआ तोह उस मनुष्य के जीवन में बुद्धि के आभाव से परेशानियां उत्तपन्न होने लगती है।नीम का पेड़ से हम उपाय करके परेशानियों से मुक्ति पा सकते है।नीम की डाल से गणपति बनाके अगर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके उसके ऊपर संकटनाशन गणपति स्त्रोत्रम का सवा लाख पाठ किया जाये विधिवत तोह तुरंत लाभ होता है। बुध ग्रह ख़राब होने से दांतों में दुर्गंध तथा अन्य बीमारिया मुँह की होती है अगर मंगल और राहु का संयोग हो तोह कैंसर जैसी बीमारी मुँह में हो सकती है।परंतु नक्षत्र का विश्लेषण करना भी जरूरी है।ऐसी समस्या में नीम के पेड़ छाल से दातुन और नीम गिलोय का विशेष् प्रयोग से इस समस्या का समाधान पाया जा सकता है। अगर 2एंड भाव में बुध और केतु का संयोग नक्षत्र का संयोग देखकर जातक को हकलाने की बीमारी होती है कई जगह गूंगा भी होता है जातक अगर ये संयोग प्रबल हो।इसमें भी नीम और अक्कलकरा का प्रयोग से रहत ही सम्भावना होती है। शनि और बुद्ध अगर दशा अंतर्दशा में और वो कुंडली में दुषित हो तोह चार्म रोग की सम्भावना प्रबल होती है।ऐसी स्थिति में भी नीम के प्रयोग से रहत मिलती है। नीम बहुत ही उपयोगी है हमारे जीवन में।जितना हो सके नीम का पेड़ लगाए।इससे हमारा बुध ग्रह प्रबल होता है और हमको शुभ लाभ करवाता है।अपनी कुंडली का विश्लेषण करवा कर बुद्ध ग्रह के उचित उपाय करे। ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय वाराणसी 9450537461

References

ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय
9450537461
posted Sep 16, 2017 by anonymous

  Promote This Article
Facebook Share Button Twitter Share Button Google+ Share Button LinkedIn Share Button Multiple Social Share Button

Related Articles
0 votes
किस ग्रह को आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं ?? मेष लग्न के लिए मारकेश शुक्र, वृषभ लग्न के लिये मंगल, मिथुन लगन वाले जातकों के लिए गुरु, कर्क और सिंह राशि वाले जातकों के लिए शनि मारकेश हैं कन्या लग्न के लिए गुरु, तुला के लिए मंगल, और वृश्चिक लग्न के लिए शुक्र मारकेश होते हैं, जबकि धनु लग्न के लिए बुध, मकर के लिए चंद्र, कुंभ के लिए सूर्य, और मीन लग्न के लिए बुध मारकेश नियुक्त किये गये हैं।सूर्य जगत की आत्मा तथा चंद्रमा अमृत और मन हैं इसलिए इन्हें मारकेश होने का दोष नहीं लगता इसलिए ये दोनों अपनी दशा-अंतर्दशा में अशुभता में कमी लाते हैं। मारकेश का विचार करते समय कुण्डली के सातवें भाव के अतिरिक्त, दूसरे, आठवें, और बारहवें भाव के स्वामियों और उनकी शुभता-अशुभता का भी विचार करना आवश्यक रहता है, सातवें भाव से आठवां द्वितीय भाव होता है जो धन-कुटुंब का भी होता हैं, इसलिए सूक्ष्म विवेचन करके ही फलादेश क‌िया जाता है। शास्त्र में शनि को मृत्यु एवं यम का सूचक माना गया है। उसके त्रिषडायाधीय या अष्टमेश होने से उसमें पापत्व तथा मारक ग्रहों से संबंध होने से उसकी मारक शक्ति चरम बिंदु पर पहुंच जाती है। तात्पर्य यह है कि शनि स्वभावतः मृत्यु का सूचक है। फिर उसका पापी होना और मारक ग्रहों से संबंध होना- वह परिस्थिति है जो उसके मारक प्रभाव को अधिकतम कर देती है। इसीलिए मारक ग्रहों के संबंध से पापी शनि अन्य मारक ग्रहों को हटाकर स्वयं मुख्य मारक हो जाता है। इस स्थिति में उसकी दशा-अंतर्दशा मारक ग्रहों से पहले आती हो तो पहले और बाद में आती हो तो बाद में मृत्यु होती है। इस प्रकार पापी शनि अन्य मारक ग्रहों से संबंध होने पर उन मारक ग्रहों को अपना मारकफल देने का अवसर नहीं देता और जब भी उन मारक ग्रहों से आगे या पहले उसकी दशा आती है उस समय में जातक को काल के गाल में पहुंचा देता है।मारकेश अर्थात-मरणतुल्य कष्ट या मृत्यु देने वाला वह ग्रह जिसे आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं। अलग-अलग लग्न के ‘मारक’ अधिपति भी अलग-अलग होते हैं। मारकेश की दशा जातक को अनेक प्रकार की बीमारी, मानसिक परेशानी, वाहन दुर्घटना, दिल का दौरा, नई बीमारी का जन्म लेना, व्यापार में हानि, मित्रों और संबंध‌ियों से धोखा तथा अपयश जैसी परेशानियां आती हैं। जन्मकुण्डली का सामयिक विशलेषण करने के पश्चात ही यह ज्ञात हो सकता है कि व्यक्ति विशेष की जीवन अवधि अल्प, मध्यम अथवा दीर्घ है। जन्मांग में अष्टम भाव, जीवन-अवधि के साथ-साथ जीवन के अन्त के कारण को भी प्रदर्शित करता है। अष्टम भाव एंव लग्न का बली होना अथवा लग्न या अष्टम भाव में प्रबल ग्रहों की स्थिति अथवा शुभ या योगकारक ग्रहों की दृष्टि अथवा लग्नेश का लग्नगत होना या अष्टमेश का अष्टम भावगत होना दीर्घायु का द्योतक है। मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए||मारकेश-निर्णय के प्रसंग में यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि पापी शनि का मारक ग्रहों के साथ संबंध हो तो वह सभी मारक ग्रहों का अतिक्रमण कर स्वयं मारक हो जाता है। इसमें संदेह नहीं है। (1) पापी या पापकृत का अर्थ है पापफलदायक। कोई भी ग्रह तृतीय, षष्ठ, एकादश या अष्टम का स्वामी हो तो वह पापफलदायक होता है। ऐसे ग्रह को लघुपाराशरी में पापी कहा जाता है। मिथुन एवं कर्क लग्न में शनि अष्टमेश, मीन एवं मेष लग्न में वह एकादशेश, सिंह एवं कन्या लग्न में वह षष्ठेश तथा वृश्चिक एवं धनु लग्न में शनि तृतीयेश होता है। इस प्रकार मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु एवं मीन इन आठ लग्नों में उत्पन्न व्यक्ति की कुंडली में शनि पापी होता है। इस पापी शनि का अनुच्छेद 45 में बतलाये गये मारक ग्रहों से संबंध हो तो वह मुख्य मारक बन जाता है। तात्पर्य यह है कि शनि मुख्य मारक बन कर अन्य मारक ग्रहों को अमारक बना देता है और अपनी दशा में मृत्यु देता है। मारकेश ग्रह का निर्णय करने से पूर्व योगों के द्वारा अल्पायु, मध्यायु या दीर्घायु है, यह निश्चित कर लेना चाहिए क्योंकि योगों द्वारा निर्णीत आयु का समय ही मृत्यु का संभावना-काल है और इसी संभावना काल में पूर्ववर्णित मारक ग्रहों की दशा में मनुष्य की मृत्यु होती है। इसलिए संभावना-काल में जिस मारक ग्रह की दशा आती है वह मारकेश कहलाता है। इस ग्रंथ में आयु निर्णय के लिए ग्रहों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है- 1. मारक लक्षण 2. मारक एवं 3. मारकेश। जो ग्रह कभी-कभी मृत्युदायक होता है उसे मारक लक्षण कहते हैं। जिन ग्रहों में से कोई एक परिस्थितिवश मारकेश बन जाता है वह मारक ग्रह कहलाता है और योगों के द्वारा निर्णीत आयु के सम्भावना काल में जिस मारक ग्रह की दशा-अंतर्दशा में जातक की मृत्यु हो सकती है वह मारकेश कहलाता है। पं रामनिवास गुरु
0 votes
नक्षत्रार्चन-विधि : रोगावलिचक्र १. #कृत्तिका नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा नौ रात तक बनी रहती है. २. #रोहणी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा तीन रात तक बनी रहती है. ३. #मृगशिरा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा पांच रात तक बनी रहती है. ४. #आर्द्रा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा प्राण-वियोगनी हो जाती है. ५. #पुनर्वसु नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा सात रात तक बनी रहती है. ६. #पुष्य नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा सात रात तक बनी रहती है. ७. #आश्लेषा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा नौ रात तक बनी रहती है. ८. #मघा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा बीस दिन तक बनी रहती है. ९. #पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दो माह तक बनी रहती है. १०. #उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा तीन पक्ष (४५ दिन) तक बनी रहती है. ११. #हस्त नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा स्वल्पकालिक होती है. १२. #चित्रा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा आधे मास तक बनी रहती है. १३. स्वाति नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दो मास तक बनी रहती है. १४. #विशाखा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा बीस दिन तक बनी रहती है. १५. #अनुराधा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दस दिन तक बनी रहती है. १६. #ज्येष्ठा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा आधे मास तक बनी रहती है. १७. #मूल नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो मृत्यु हो जाती है. १८. #पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा पंद्रह दिन तक बनी रहती है. १९. #उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा बीस दिन तक बनी रहती है. २०. #श्रवण नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दो मास तक बनी रहती है. २१. #धनिष्ठा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा आधा मास तक बनी रहती है. २२. #शतभिषा नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दस दिन तक बनी रहती है. २३. #पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा नौ दिन तक बनी रहती है. २४. #उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा पंद्रह दिन तक बनी रहती है. २५. #रेवती नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा दस दिन तक बनी रहती है. २६. #अश्विनी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो एक दिन-रात कष्ट होता है. २७. #भरणी नक्षत्र में कोई व्याधि होती है तो वह पीड़ा सात दिन तक बनी रहती है. रोग के प्रारम्भिक नक्षत्र का ज्ञान हो जाने पर उस #नक्षत्र के #अधिदेवता के निमित्त निर्दिष्ट द्रव्यों द्वारा #हवन करने से रोग-व्याधि की #शान्ति हो जाती है. व्याधि नक्षत्र के किस #चरण में उत्पन्न हुई है, इसका ठीक पता लगा आकर आपत्तिजनक स्थितियों में व्याधि से मुक्ति के लिये उस नक्षत्र के स्वामी के मन्त्रों से अभीष्ट समिधा द्वारा हवन करना चाहिये. #विशेष #टिप्पणी : ज्योतिर्निर्बंध आदि ज्योतिषग्रंथो के अनुसार आर्द्रा, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद में #मृत्यु का भय होता है या बीमारी #स्थिर हो जाती है. अतः इनकी निवृत्ति के लिये तत्तद् मन्त्र आदि का जप-हवन करना चाहिए
0 votes
बंधन दोष: प्रभाव और निवारण के उपाय के विषय में जिस प्रकार देवता हैं, तो दानव भी हैं,अच्छाई है, तो बुराई भी है, मनुष्य है,तो राक्षस भी है, प्रत्यक्ष है, तो अप्रत्यक्ष भी है, उसी प्रकार षटकर्मों अर्थात आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन, विद्वेषण और मारण आदि में अच्छे कर्म भी हैं, तो बुरे भी जिन्हें मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु उपयोग में लाता है और अच्छे-बुरे की सीमा को भी लांघ जाता है। इन षटकर्मों में स्तंभन ही बंधन है। इसका प्रयोग कर किसी की शक्ति, कार्य, व्यापार, प्रगति आदि को कुंठित या अवरुद्ध कर दिया जाता है। साधारण शब्दों में बंधन का अर्थ है बांध देना। प्रत्यक्ष तौर पर बांध देने की क्रिया को बांधना कहते हैं, परंतु अप्रत्यक्ष रूप से बांधना बंधन कहलाता है। अधिकतर लोगों को ऐसा लगता है कि बंधन की क्रिया केवल तांत्रिक ही कर सकते हैं और यह तंत्र से संबंधित है। परंतु वास्तविकता इसके विपरीत है। किसी कार्य विशेष के मार्ग को अभिचार क्रिया से अवरुद्ध कर देना ही बंधन है। यहां कुछ प्रमुख बंधन दोषों, उनके परिणाम तथा उनके निवारण के उपायों का विवरण प्रस्तुत है।
0 votes

आज हम बात करेंगे महिलाएं और उनको प्रभावित करने वाले नौ ग्रहों के विषय मे वैसे तो सौरमंडल के सभी ग्रह धरती पर सभी प्राणियों पर एक जैसा ही प्रभाव डालते हैं। लेकिन सभी प्राणियों का रहन सहन और प्रवृत्ति या प्रकृति एक दूसरे से भिन्न होती है इसलिए ग्रहों का प्रभाव कुछ कम -ज्यादा तो होता ही है। यहाँ सिर्फ महिलाओं पर सभी ग्रहों के प्रभाव का ही जिक्र किया जा रहा है। कई बार महिलाएं असामान्य व्यवहार करती हैं तो उन्हें बहुत झेलना पड़ता है कि उसे किसी ने कुछ सिखा दिया है या बहाने बना रही है जबकि कई बार ग्रहों की अच्छी (उग्र) या बुरी ( कुपित ) स्थिति भी कारण होती है। जन्म -कुंडली में विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग-अलग प्रभाव हो सकता है। ♐सूर्य सूर्य एक उष्ण और सतोगुणी ग्रह है,यह आत्मा और पिता का कारक हो कर राज योग भी देता है। अगर जन्म कुंडली में यह अच्छी स्थिति में हो तो इंसान को स्फूर्तिवान,प्रभावशाली व्यक्तित्व, महत्वाकांक्षी और उदार बनाता है। परन्तु निर्बल सूर्य या दूषित सूर्य होने पर इंसान को चिड़चिड़ा, क्रोधी, घमंडी, आक्रामक और अविश्वसनीय बना देता है। अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देती है। परन्तु जब यही सूर्य उसकी कुंडली में नीच का हो या दूषित हो जाये तो महिला अपने दिल पर एक बोझ सा लिए फिरती है। अन्दर से कभी भी खुश नहीं रहती और आस -पास का माहौल भी तनाव पूर्ण बनाये रखती है। जो घटना अभी घटी ही ना हो उसके लिए पहले ही परेशान हो कर दूसरों को भी परेशान किये रहती है। बात-बात पर शिकायतें, उलाहने उसकी जुबान पर तो रहते ही हैं, धीरे -धीरे दिल पर बोझ लिए वह एक दिन रक्त चाप की मरीज बन जाती है और न केवल वह बल्कि उसके साथ रहने वाले भी इस बीमारी के शिकार हो जाते है। दूषित सूर्य वाली महिलायें अपनी ही मर्जी से दुनिया को चलाने में यकीन रखती हैं सिर्फ अपने नजरिये को ही सही मानती हैं दूसरा चाहे कितना ही सही हो उसे विश्वास नहीं होगा। सूर्य का आत्मा से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह अगर दूषित या नीच का हो तो दिल डूबा-डूबा सा रहता है जिस कारण चेहरा निस्तेज सा होने लगता है। ♐उपाय♏ सूर्य को जल देना ,सुबह उगते हुए सूर्य को कम से कम पंद्रह -मिनट देखते हुए गायत्री मन्त्र का जाप ,आदित्य-हृदय का पाठ और अधिक परेशानी हो तो रविवार का व्रत भी किया जा सकता है। संतरी रंग (उगते हुए सूरज) का प्रयोग अधिक करें . ♐चंद्रमा किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्त्री की कुंडली में इसका महत्व और भी अधिक है। चन्द्र राशि से स्त्री का स्वभाव, प्रकृति, गुण -अवगुण आदि निर्धारित होते है। चंद्रमा माता, मन, मस्तिष्क, बुद्धिमत्ता, स्वभाव, जननेन्द्रियाँ, प्रजनन सम्बंधी रोगों, गर्भाशय अंडाशय, मूत्र -संस्थान, छाती और स्तन का कारक है..इसके साथ ही स्त्री के मासिक -धर्म ,गर्भाधान एवं प्रजनन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। चंद्रमा मन का कारक है ,इसका निर्बल और दूषित होना मन एवं मति को भ्रमित कर किसी भी इंसान को पागल तक बना सकता है। कुंडली में चंद्रमा की कैसी स्थिति होगी यह किसी भी महिला के आचार -व्यवहार से जाना जा सकता है। अच्छे चंद्रमा की स्थिति में कोई भी महिला खुश -मिजाज होती है। चेहरे पर चंद्रमा की तरह ही उजाला होता है। यहाँ गोरे रंग की बात नहीं की गयी है क्योंकि चंद्रमा की विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है। कुंडली का अच्छा चंद्रमा किसी भी महिला को सुहृदय ,कल्पनाशील और एक सटीक विचारधारा युक्त करता है। अच्छा चन्द्र महिला को धार्मिक और जनसेवी भी बनाता है। लेकिन किसी महिला की कुंडली में यही चन्द्र नीच का हो जाये या किसी पापी ग्रह के साथ या अमावस्या का जन्म को या फिर क्षीण हो तो महिला सदैव भ्रमित ही रहेगी। हर पल एक भय सा सताता रहेगा या उसको लगता रहेगा कोई उसका पीछा कर रहा है या कोई भूत -प्रेत का साया उसको परेशान कर रहा है। कमजोर या नीच का चन्द्र किसी भी महिला को भीड़ भरे स्थानों से दूर रहने को उकसाएगा और एकांतवासी कर देता है धीरे-धीरे। , महिला को एक चिंता सी सताती रहती है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है। बात-बात पर रोना या हिस्टीरिया जैसी बीमारी से भी ग्रसित हो सकती है। बहुत चुप रहने लगती है या बहुत ज्यादा बोलना शुरू कर देती है। ऐसे में तो घर-परिवार और आस पास का माहौल खराब होता ही है। बार-बार हाथ धोना, अपने बिस्तर पर किसी को हाथ नहीं लगाने देना और देर तक नहाना भी कमजोर चन्द्र की निशानी है। ऐसे में जन्म-कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करवाकर उपाय करवाना चाहिए। ♐उपाय♐ अगर किसी महिला के पास कुंडली नहीं हो तो ये सामान्य उपाय किये जा सकते हैं, जैसे शिव आराधाना,अच्छा मधुर संगीत सुनें, कमरे में अँधेरा न रखें,हल्के रंगों का प्रयोग करें। पानी में केवड़े का एसेंस डाल कर पियें, सोमवार को एक गिलास ढूध और एक मुट्ठी चावल का दान मंदिर में दं, और घर में बड़ी उम्र की महिलाओं के रोज चरण -स्पर्श करते हुए उनका आशीर्वाद अवश्य लें। छोटे बच्चों के साथ बैठने से भी चंद्रमा अनुकूल होता है। ♈♈♈♈♈♈♈♈♈♈♈♈♈ ♐मंगल⏬ ग्रहों का सेनापति मंगल, अग्नितत्व प्रधान तेजस ग्रह है। इसका रंग लाल है और यह रक्त-संबंधो का प्रतिनिधित्व करता है। जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है। शुभ मंगल से स्त्री अनुशासित, न्यायप्रिय,समाज में प्रिय और सम्मानित होती है। जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और हृदय हीन भी बना देता है। मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना, उग्रता और आक्रामकता लाता है इसीलिए जन्म-कुंडली में विवाह से संबंधित भावों–जैसे द्वादश, लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम व अष्टम भाव में मंगल की स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है। लेकिन जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुजदिल होती है,थोड़ी सी डरपोक भी होती है। मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है। ⏬उपाय⏬ कमजोर मंगल वाली स्त्रियाँ हाथ में लाल रंग का धागा बांध कर रखे और भोजन करने के बाद थोड़ा सा गुड़ जरुर खा लें। ताम्बे के गिलास में पानी पियें और अनामिका में ताम्बे का छल्ला पहन लें। जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल उग्र स्थिति में होता है उनको लाल रंग कम धारण करना चाहिए और मसूर की दाल का दान करना चाहिए। रक्त-सम्बन्धियों का सम्मान करना चाहिए जैसे बुआ, मौसी, बहन,भाई और अगर शादी शुदा है तो पति के रक्त सम्बन्धियों का भी सम्मान करें . हनुमान जी की शरण में रहना कैसे भी मंगल दोष को शांत रखता है। ◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀◀ ♐बुध♐ बुध ग्रह एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है। यह किसी भी स्त्री में बुद्धि, निपुणता, वाणी ..वाकशक्ति, व्यापार, विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक कारक है। यह द्विस्वभाव, अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ-साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह के साथ स्थित होता है, उसी प्रकार के फल देने लगता है। अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ, अशुभ ग्रह के अशुभ प्रभाव देता है। अगर यह पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी, अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं कि कानाें की कच्ची होती है। जो घटना घटित भी न हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है। बुध बुद्धि का परिचायक भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है। जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी ऊँचाइयों को छूती हैं, अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान् और चतुर और एक अच्छी सलाहकार साबित होती है। व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी समस्याओं का हल निकाल लेती हैं। उपाय♓ हरे मूंग (साबुत), हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन और दान, हरे वस्त्र को धारण और दान देना उपुयक्त है। तांबे के गिलास में जल पीना चाहिए। अगर कुंडली न हो और मानसिक अवसाद ज्यादा रहता हो तो सफेद और हरे रंग के धागे को आपस में मिला कर अपनी कलाई में बाँध लेना चाहिए।

0 votes
*दुर्गा सप्तशती के पाठ का महत्व* = माँ दुर्गा की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वोत्तम है . . भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है- जिस प्रकार से ''वेद'' अनादि है, उसी प्रकार ''सप्तशती'' भी अनादि है . . = दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है . दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं . . दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय अलग अलग इच्छित मनोकामना की सहर्ष ही पूर्ति करते है . . = प्रथम अध्याय: - इसके पाठ से सभी प्रकार की चिंता दूर होती है एवं शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु का भी भय दूर होता है शत्रुओं का नाश होता है . . = द्वितीय अध्याय:- इसके पाठ से बलवान शत्रु द्वारा घर एवं भूमि पर अधिकार करने एवं किसी भी प्रकार के वाद विवाद आदि में विजय प्राप्त होती है . . = तृतीय अध्याय: - तृतीय अध्याय के पाठ से युद्ध एवं मुक़दमे में विजय, शत्रुओं से छुटकारा मिलता है . . = चतुर्थ अध्याय: - इस अध्याय के पाठ से धन, सुन्दर जीवन साथी एवं माँ की भक्ति की प्राप्ति होती है . = पंचम अध्याय: - पंचम अध्याय के पाठ से भक्ति मिलती है, भय, बुरे स्वप्नों और भूत प्रेत बाधाओं का निराकरण होता है . . = छठा अध्याय: - इस अध्याय के पाठ से समस्त बाधाएं दूर होती है और समस्त मनवाँछित फलो की प्राप्ति होती है . . = सातवाँ अध्याय: - इस अध्याय के पाठ से ह्रदय की समस्त कामना अथवा किसी विशेष गुप्त कामना की पूर्ति होती है . = आठवाँ अध्याय: - अष्टम अध्याय के पाठ से धन लाभ के साथ वशीकरण प्रबल होता है . . = नौवां अध्याय:- नवम अध्याय के पाठ से खोये हुए की तलाश में सफलता मिलती है, संपत्ति एवं धन का लाभ भी प्राप्त होता है . = दसवाँ अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से गुमशुदा की तलाश होती है, शक्ति और संतान का सुख भी प्राप्त होता है . ., = ग्यारहवाँ अध्याय:- ग्यारहवें अध्याय के पाठ से किसी भी प्रकार की चिंता से मुक्ति , व्यापार में सफलता एवं सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है . = बारहवाँ अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से रोगो से छुटकारा, निर्भयता की प्राप्ति होती है एवं समाज में मान-सम्मान मिलता है . = तेरहवां अध्याय:- तेरहवें अध्याय के पाठ से माता की भक्ति एवं सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है . . = मनुष्य की इच्छाएं अनंत है और इन्ही की पूर्ति के लिए दुर्गा सप्तशती से सुगम और कोई भी मार्ग नहीं है . . इसीलिए नवरात्र में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों का पाठ करने का विधान है . .
Dear friends, futurestudyonline given book now button (unlimited call)24x7 works , that means you can talk until your satisfaction , also you will get 3000/- value horoscope free with book now www.futurestudyonline.com
...