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किस ग्रह को आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं ??

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किस ग्रह को आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं ?? मेष लग्न के लिए मारकेश शुक्र, वृषभ लग्न के लिये मंगल, मिथुन लगन वाले जातकों के लिए गुरु, कर्क और सिंह राशि वाले जातकों के लिए शनि मारकेश हैं कन्या लग्न के लिए गुरु, तुला के लिए मंगल, और वृश्चिक लग्न के लिए शुक्र मारकेश होते हैं, जबकि धनु लग्न के लिए बुध, मकर के लिए चंद्र, कुंभ के लिए सूर्य, और मीन लग्न के लिए बुध मारकेश नियुक्त किये गये हैं।सूर्य जगत की आत्मा तथा चंद्रमा अमृत और मन हैं इसलिए इन्हें मारकेश होने का दोष नहीं लगता इसलिए ये दोनों अपनी दशा-अंतर्दशा में अशुभता में कमी लाते हैं। मारकेश का विचार करते समय कुण्डली के सातवें भाव के अतिरिक्त, दूसरे, आठवें, और बारहवें भाव के स्वामियों और उनकी शुभता-अशुभता का भी विचार करना आवश्यक रहता है, सातवें भाव से आठवां द्वितीय भाव होता है जो धन-कुटुंब का भी होता हैं, इसलिए सूक्ष्म विवेचन करके ही फलादेश क‌िया जाता है। शास्त्र में शनि को मृत्यु एवं यम का सूचक माना गया है। उसके त्रिषडायाधीय या अष्टमेश होने से उसमें पापत्व तथा मारक ग्रहों से संबंध होने से उसकी मारक शक्ति चरम बिंदु पर पहुंच जाती है। तात्पर्य यह है कि शनि स्वभावतः मृत्यु का सूचक है। फिर उसका पापी होना और मारक ग्रहों से संबंध होना- वह परिस्थिति है जो उसके मारक प्रभाव को अधिकतम कर देती है। इसीलिए मारक ग्रहों के संबंध से पापी शनि अन्य मारक ग्रहों को हटाकर स्वयं मुख्य मारक हो जाता है। इस स्थिति में उसकी दशा-अंतर्दशा मारक ग्रहों से पहले आती हो तो पहले और बाद में आती हो तो बाद में मृत्यु होती है। इस प्रकार पापी शनि अन्य मारक ग्रहों से संबंध होने पर उन मारक ग्रहों को अपना मारकफल देने का अवसर नहीं देता और जब भी उन मारक ग्रहों से आगे या पहले उसकी दशा आती है उस समय में जातक को काल के गाल में पहुंचा देता है।मारकेश अर्थात-मरणतुल्य कष्ट या मृत्यु देने वाला वह ग्रह जिसे आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं। अलग-अलग लग्न के ‘मारक’ अधिपति भी अलग-अलग होते हैं। मारकेश की दशा जातक को अनेक प्रकार की बीमारी, मानसिक परेशानी, वाहन दुर्घटना, दिल का दौरा, नई बीमारी का जन्म लेना, व्यापार में हानि, मित्रों और संबंध‌ियों से धोखा तथा अपयश जैसी परेशानियां आती हैं। जन्मकुण्डली का सामयिक विशलेषण करने के पश्चात ही यह ज्ञात हो सकता है कि व्यक्ति विशेष की जीवन अवधि अल्प, मध्यम अथवा दीर्घ है। जन्मांग में अष्टम भाव, जीवन-अवधि के साथ-साथ जीवन के अन्त के कारण को भी प्रदर्शित करता है। अष्टम भाव एंव लग्न का बली होना अथवा लग्न या अष्टम भाव में प्रबल ग्रहों की स्थिति अथवा शुभ या योगकारक ग्रहों की दृष्टि अथवा लग्नेश का लग्नगत होना या अष्टमेश का अष्टम भावगत होना दीर्घायु का द्योतक है। मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए||मारकेश-निर्णय के प्रसंग में यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि पापी शनि का मारक ग्रहों के साथ संबंध हो तो वह सभी मारक ग्रहों का अतिक्रमण कर स्वयं मारक हो जाता है। इसमें संदेह नहीं है। (1) पापी या पापकृत का अर्थ है पापफलदायक। कोई भी ग्रह तृतीय, षष्ठ, एकादश या अष्टम का स्वामी हो तो वह पापफलदायक होता है। ऐसे ग्रह को लघुपाराशरी में पापी कहा जाता है। मिथुन एवं कर्क लग्न में शनि अष्टमेश, मीन एवं मेष लग्न में वह एकादशेश, सिंह एवं कन्या लग्न में वह षष्ठेश तथा वृश्चिक एवं धनु लग्न में शनि तृतीयेश होता है। इस प्रकार मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु एवं मीन इन आठ लग्नों में उत्पन्न व्यक्ति की कुंडली में शनि पापी होता है। इस पापी शनि का अनुच्छेद 45 में बतलाये गये मारक ग्रहों से संबंध हो तो वह मुख्य मारक बन जाता है। तात्पर्य यह है कि शनि मुख्य मारक बन कर अन्य मारक ग्रहों को अमारक बना देता है और अपनी दशा में मृत्यु देता है। मारकेश ग्रह का निर्णय करने से पूर्व योगों के द्वारा अल्पायु, मध्यायु या दीर्घायु है, यह निश्चित कर लेना चाहिए क्योंकि योगों द्वारा निर्णीत आयु का समय ही मृत्यु का संभावना-काल है और इसी संभावना काल में पूर्ववर्णित मारक ग्रहों की दशा में मनुष्य की मृत्यु होती है। इसलिए संभावना-काल में जिस मारक ग्रह की दशा आती है वह मारकेश कहलाता है। इस ग्रंथ में आयु निर्णय के लिए ग्रहों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है- 1. मारक लक्षण 2. मारक एवं 3. मारकेश। जो ग्रह कभी-कभी मृत्युदायक होता है उसे मारक लक्षण कहते हैं। जिन ग्रहों में से कोई एक परिस्थितिवश मारकेश बन जाता है वह मारक ग्रह कहलाता है और योगों के द्वारा निर्णीत आयु के सम्भावना काल में जिस मारक ग्रह की दशा-अंतर्दशा में जातक की मृत्यु हो सकती है वह मारकेश कहलाता है। पं रामनिवास गुरु

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ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय
9450537461
posted Sep 17, 2017 by anonymous

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बुध ग्रह और नीम के पेड़ का संयोग आज बताता हूँ।की नीम के पेड़ से हम अपनी बुद्ध ग्रह जनित परेशानियों को दूर कर सकते है। बुध के स्थान बली होने पर जातक को बौद्धिकता की प्राप्ति होती है वह विचारों से शील होता है तथा हंसमुख स्वभाव का होता है. मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. उच्च पद व अधिकारों की प्राप्ति होती है. जातक धैर्यवान व उत्साही होता है. तर्क वितर्क करने में अग्रसर रहता है तथा अपने मत को सदैव आगे बढ़कर प्रस्तुत करने की चाह रखता है. स्थान बल से हीन होने पर जातक स्त्री व संतान की चिंता से ग्रस्त रह सकता है. बुद्धि कुतर्क में अधिक लग सकती है. समझ में कंइ आ सकती है. उचित-अनुचित का बोध नहीं कर पाता है. स्थान से दूर जाकर काम करता है अथवा पद से अवनती भी झेलनी पड़ सकती है।अगर बुध ग्रह खराब हुआ तोह उस मनुष्य के जीवन में बुद्धि के आभाव से परेशानियां उत्तपन्न होने लगती है।नीम का पेड़ से हम उपाय करके परेशानियों से मुक्ति पा सकते है।नीम की डाल से गणपति बनाके अगर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके उसके ऊपर संकटनाशन गणपति स्त्रोत्रम का सवा लाख पाठ किया जाये विधिवत तोह तुरंत लाभ होता है। बुध ग्रह ख़राब होने से दांतों में दुर्गंध तथा अन्य बीमारिया मुँह की होती है अगर मंगल और राहु का संयोग हो तोह कैंसर जैसी बीमारी मुँह में हो सकती है।परंतु नक्षत्र का विश्लेषण करना भी जरूरी है।ऐसी समस्या में नीम के पेड़ छाल से दातुन और नीम गिलोय का विशेष् प्रयोग से इस समस्या का समाधान पाया जा सकता है। अगर 2एंड भाव में बुध और केतु का संयोग नक्षत्र का संयोग देखकर जातक को हकलाने की बीमारी होती है कई जगह गूंगा भी होता है जातक अगर ये संयोग प्रबल हो।इसमें भी नीम और अक्कलकरा का प्रयोग से रहत ही सम्भावना होती है। शनि और बुद्ध अगर दशा अंतर्दशा में और वो कुंडली में दुषित हो तोह चार्म रोग की सम्भावना प्रबल होती है।ऐसी स्थिति में भी नीम के प्रयोग से रहत मिलती है। नीम बहुत ही उपयोगी है हमारे जीवन में।जितना हो सके नीम का पेड़ लगाए।इससे हमारा बुध ग्रह प्रबल होता है और हमको शुभ लाभ करवाता है।अपनी कुंडली का विश्लेषण करवा कर बुद्ध ग्रह के उचित उपाय करे। ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय वाराणसी 9450537461
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शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी एवं मां संतोषी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को चंचला कहा गया है। चंचला का मतलब है ऐसी देवी जिनका किसी एक स्थान पर अधिक समय तक रहना तय नहीं है। जी को हिंदू धर्म में सुख-समृद्धि, धन, वैभव तथा ऐश्वर्य की देवी माना जाता है। देवी लक्ष्मी की कई मंत्रों से पूजा की जाती है लेकिन सबसे प्रसिद्ध और प्रभावी मंत्र वैभव लक्ष्मी मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि लक्ष्मी जी की पूजा करते हुए वैभव लक्ष्मी मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के घर में कभी धन का अभाव नहीं रहता है। पूजा पाठ करने वाले और भक्ति भाव में लीन लोग शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को पूजते हैं। मान्यता है कि शुक्रवार को लक्ष्मी का पूजन करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन की वर्षा होती है। हिंदू धर्म में शुक्रवार को मां लक्ष्मी का दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी पूजन से धन की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने का भी प्रावधान है। हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवता या देवी को समर्पित है। शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी एवं मां संतोषी की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। धन को अपने पास स्थाई बनाने के लिए मां लक्ष्मी का पूजन कर उन्हें प्रसन्न रखा जाता है ताकि वे कहीं ओर न जाएं। इसके लिए हिंदू धर्म में कई उपाय, पूजन, आराधना और मंत्र-जाप आदि का विधान है। शुक्रवार को पूरे दिन व्रत रख शाम को स्नान के बाद माता लक्ष्मी की पूजा करें। वैभव लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र की पूजा में खासतौर पर लाल चंदन, गंध, लाल वस्त्र, लाल फूल अर्पित करें। खीर का भोग लगाएं। मान्यता है घी के पांच बत्तियों वाले दीप से आरती कर माता को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। श्री वैभव लक्ष्मी मंत्र का जाप करने से जातक के घर में कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं रहता है और लक्ष्मी जी की कृपा से उसका जीवन सुख- शांति, धन- वैभव से हमेशा भरा रहता है।
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ग्रहो के कमजोर होने पर जीवन पर होने वाले प्रभाव*** : सूर्य सबसे पहले बात करते हैं सूर्य ग्रह की। सामाजिक अपयश, पिता के साथ कलह या वैचारिक मतभेद, आंख, हृदय या पेट का कोई रोग होना इस बात को दर्शाता है कि जातक की कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में है। जीवन में असंतुष्ट रहना और मुंह में कमजोर चंद्रमा घर में पानी के नल्कों या कुंओं का सूख जाना, पालतू दुधारू पशु की मृत्यु हो जाना, माता को कष्ट होना, मन में बार-बार आत्महत्या करने के विचारों का जन्म लेना भी कमजोर चंद्रमा की ओर इशारा करता है। मंगल आए दिन कोई ना कोई दुर्घटना होना, घर के बिजली के समान जल्दी खराब हो जाना, विशेषकर जिस कमरे में व्यक्ति रहता है वहां मौजूद बिजली के उपकरणों का कम समय में ही खराब हो जाना, मंगल दोष की वजह से होता है। मंगल के दोषी होने पर रक्त समस्या, भाई से विवाद और अत्याधिक क्रोध जैसी स्थिति जन्म लेती है। बुध ज्योतिष विद्या में बुध को व्यापार और स्वास्थ्य का कारक बताया गया है। जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध अशुभ या कमजोर स्थिति में होता है उस व्यक्ति के दांत कमजोर रहते हैं। उसकी सूंघने की शक्ति कम हो जाती है और एक समय के बाद उसे गुप्त रोग होने की संभावना भी प्रबल हो जाती है। बृहस्पति अगर किसी विद्यार्थी को पढ़ाई में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, किसी के असमय बाल झड़ने शुरू हो गए हैं, अपमान का शिकार होना पड़ रहा है, व्यापार की स्थिति बदतर होती जा रही है, घर में कलह का माहौल बन गया है तो निश्चित तौर पर यह कमजोर बृहस्पति की ओर इशारा करता है। शुक्र ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह मौज-मस्ती, भोग-विलास और आलीशान जीवन व्यतीत करवाता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र सही नहीं है तो उस व्यक्ति के मन में भटकाव अवश्य रहेगा। वह अपने हाथ से धन का नाश करता है, उसे चर्म रोग और स्वप्न दोष होने की संभावना रहती है। शनि शनि धीमी गति का ग्रह है, अगर किसी की कुंडली में शनि पीड़ित या कमजोर होता है तो उस व्यक्ति का हर कार्य बहुत आराम से होता है। अगर आपके मकान का कोई हिस्सा गिर गया है या टूट गया है तो यह कमजोर शनि की ओर इशारा करता है। वाहन से दुर्घटना या धड़ के निचले हिस्से, विषेकर जांघों के हिस्से में परेशानी कमजोर शनि की वजह से होती है। राहु शक, संदेह, मानसिक परेशानियां, आपसी तालमेल में रुकावट, बात-बात पर क्रोधित हो जाना, गुस्से एमं अपशब्द या गाली-गलौज करना, ये सब राहु के परिणाम हैं। कुंडली में राहु के अशुभ होने से हाथ के नाखून टूटने लगते हैं और पेट से संबंधित परेशानियां लग जाती हैं वाहन से दुर्घटना, मस्तिष्क की पीड़ा, दिमागी संतुलन बिगड़ जाना, भोजन या किसी खाद्य पदार्थ में अकसर बाल दिखना, सामाजिक मानहानि होना, ये सभी राहु ग्रह के दुष्प्रभाव हैं। केतु जब किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु अशुभ फलदायी होता है तो उसे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ चर्म रोग भी हो सकता है। वह व्यक्ति खुद अपने लिए ही गलत धारण बना लेता है जो उसे नुकसान पहुंचाती है।
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