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जानिए कुंडली में गुरु की 12 भाव मे प्रभाव

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जानिए कुंडली में गुरु की 12 भाव मे प्रभाव |.   जिस जातक के लग्न में बृहस्पति स्थित होता है, वह जातक दिव्य देह से युक्त, आभूषणधारी, बुद्धिमान, लंबे शरीर वाला होता है।. ऐसा व्यक्ति धनवान, प्रतिष्ठावान तथा राजदरबार में मान-सम्मान पाने वाला होता है।. शरीर कांति के समान, गुणवान, गौर वर्ण, सुंदर वाणी से युक्त,सतोगुणी एवं कफ प्रकृति वाला होता है।दीर्घायु, सत्कर्मी, पुत्रवान एवं सुखी बनाता है लग्न का बृहस्पति।.   जिस जातक के द्वितीय भाव में बृहस्पति होता है, उसकी बुद्धि, उसकी स्वाभाविक रुचि काव्य-शास्त्र की ओर होती है।. द्वितीय भाव वाणी का भी होता इस कारण जातक वाचाल होता है।. उसमें अहम की मात्रा बढ़ जाती है।. क्योंकि द्वितीय भाव कुटुंब, वाणी एवं धन का होता है और बृहस्पति इस भाव का कारक भी है, इस कारण द्वितीय भाव स्थित बृहस्पति, कारक भावों नाश्यति के सूत्र के अनुसार, इस भाव के शुभ फलों में कमी ही करता देखा गया है।. धनार्जन के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना,वाणी की प्रगल्भता, अथवा बहुत कम बोलना और परिवार में संतुलन बनाये रखने हेतु उसे प्रयास करने पड़ते हैं।. राजदरबार में उसे दंड देने का अधिकारी होता है। अन्य लोग इसका मान-सम्मान करते हैं।. ऐसा जातक शत्रुरहित होता है।. आयुर्भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण वह दीर्घायु और विध्वान होता है।. पाप ग्रह से युक्त होने पर शिक्षा में रुकावटें आती हैं तथा वहमिथ्याभाषी हो जाता है।. दूषित गुरु से शुभ फलों मेंकमी आती है और घर के बड़ों से विरोध कराता है।.   जिस जातक के तृतीय भाव में बृहस्पति होता है, वह मित्रों के प्रति कृतघ्न और सहोदरों का कल्याण करने वाला होता है।. वराहमिहिर के अनुसार वह कृपण होता है।. इसी कारण धनवान हो कर भी वह निर्धन के समान परिलक्षित होता है।. परंतु शुभ ग्रहों से युक्त होने पर उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं।. पुरुष राशि में होने पर शिक्षा अपूर्ण रहती है, परंतु विधवान प्रतीत होता है।. इस स्थान में स्थित गुरु के जातक के लिए सर्वोत्तम व्यवसाय अध्यापक का होता है।. शिक्षक प्रत्येक स्थिति में गंभीर एवं शांत बने रहते हैं तथा परिस्थितियों का कुशलतापूर्वक सामना करते हैं।.   जिस जातक के चतुर्थ स्थान में बलवान बृहस्पति होता है, वह देवताओं और ब्राह्मणों से प्रीति रखता है, राजा से सुख प्राप्त करता है, सुखी, यशस्वी, बली, धन-वाहनादि से युक्त होता है और पिता को सुखी बनाता है।. वह सुहृदय एवं मेधावी होता है। इस भाव में अकेला गुरू पूर्वजों से संपत्ति प्राप्त करता है।.   जिस जातक के पंचम स्थान में बृहस्पति होता है, वह बुद्धिमान, गुणवान, तर्कशील, श्रेष्ठ एवं विद्वानों द्वारा पूजित होता है।. धनु एवं मीन राशि में होने से उसकी कम संतति होती है।. कर्क में वह संतति रहित भी देखा गया है।. सभा में तर्कानुकूल उचित बोलने वाला, शुद्धचित तथा विनम्र होता है।. पंचमस्थ गुरु के कारण संतान सुख कम होता है।. संतान कम होती है और उससे सुख भी कम ही मिलता है।.   रिपु स्थान, अर्थात जन्म लग्न से छठे स्थान में बृहस्पति होने पर जातक शत्रुनाशक, युद्धजया होता है एवं मामा से विरोध करता है।. स्वयं, माता एवं मामा के स्वास्थ्य में कमी रहती है।. संगीत विधा में अभिरुचि होती है।. पाप ग्रहों की राशि में होने से शत्रुओं से पीड़ित भी रहता है।. गुरु – चंद्र का योग इस स्थान पर दोष उत्पन्न करता है।. यदि गुरु शनि के घर राहु के साथ स्थित हो, तो रोगों का प्रकोप बना रहता है।. इस भाव का गुरु वैध, डाक्टर और अधिवक्ताओं हेतु अशुभ है।. इस भाव के गुरु के जातक के बारे में लोग संदिग्ध और संशयात्मा रहते हैं।. पुरुष राशि में गुरु होने पर जुआ, शराब और वेश्या से प्रेम होता है।. इन्हें मधुमेह, बहुमूत्रता, हर्निया आदि रोग हो सकते हैं।. धनेश होने पर पैतृक संपत्ति से वंचित रहना पड़ सकता है।.   जिस जातक के जन्म लग्न से सप्तम भाव में बृहस्पति हो, तो ऐसा जातक, बुद्धिमान, सर्वगुणसंपन्न, अधिक स्त्रियों में आसक्त रहने वाला, धनी, सभा में भाषण देने में कुशल, संतोषी, धैर्यवान, विनम्र और अपने पिता से अधिक और उच्च पद को प्राप्त करने वाला होता है।. इसकी पत्नी पतिव्रता होती है।. मेष, सिंह, मिथुन एवं धनु में गुरु हो, तो शिक्षा के लिए श्रेष्ठ है, जिस कारण ऐसा व्यक्ति विधवान, बुद्धिमान, शिक्षक, प्राध्यापक और न्यायाधीश हो सकता है।.   जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में बृहस्पति होता है, वह पिता के घर में अधिक समय तक नहीं रहता।. वह कृशकाय और दीर्घायु होता है।. द्वितीय भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण धनी होता है।. वह कुटुंब से स्नेह रखता है।. उसकी वाणी संयमित होती है।. यदि शत्रु राशि में गुरु हो, तो जातक शत्रुओं से घिरा हुआ, विवेकहीन, सेवक, निम्न कार्यों में लिप्त रहने वाला और आलसी होता है।. स्वग्रही एवं शुभ राशि में होने पर जातक ज्ञानपूर्वक किसी उत्तम स्थान पर मृत्यु को प्राप्त करता है।. वह सुखी होता है।. बाह्य संबंधों से लाभान्वित होता है। स्त्री राशि में होने के कारण अशुभ फल और पुरुष राशि में होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।.   जिस जातक के नवम स्थान में बृहस्पति हो, उसका घर चार मंजिल का होता है।. धर्म में उसकी आस्था सदैव बनी रहती है।. उसपर राजकृपा बनी रहती है, अर्थात जहां भी नौकरी करेगा, स्वामी की कृपा दृष्टि उसपर बनी रहेगी।. वह उसका स्नेह पात्र होगा।. बृहस्पति उसका धर्म पिता होगा।. सहोदरों के प्रति वह समर्पित रहेगा और ऐश्वर्यशाली होगा।. उसका भाग्यवान होना अवश्यंभावी है और वह विद्वान, पुत्रवान,सर्वशास्त्रज्ञ, राजमंत्री एवं विद्वानों का आदर करने वाला होगा।.   जिस जातक के दसवें भाव में बृहस्पति हो, उसके घर पर देव ध्वजा फहराती रहती है।. उसका प्रताप अपने पिता-दादा से कहीं अधिक होता है।. उसको संतान सुख अल्प होता है।. वह धनी और यशस्वी, उत्तम आचरण वाला और राजा का प्रिय होता है।. इसे मित्रों का, स्त्री का, कुटुंब का धन और वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।. दशम में रवि हो, तो पिता से, चंद्र हो, तो माता से, बुध हो, तो मित्र से, मंगल हो, तो शत्रु से, गुरु हो, तो भाई से, शुक्र हो, तो स्त्री से एवं शनि हो, तो सेवकों से उसे धन प्राप्त होता है।.   जिस जातक के एकादश भाव में बृहस्पति हो, उसकी धनवान एवं विधवान भी सभा में स्तृति करते हैं।. वह सोना-चांदी आदि अमूल्य पदार्थों का स्वामी होता है।. वह विधवान, निरोगी, चंचल, सुंदर एवं निज स्त्री प्रेमी होता है।. परंतु कारक भावों नाश्यति, के कारण इस भाव के गुरु के फल सामान्य ही दृष्टिगोचर होते हैं, अर्थात इनके शुभत्व में कमी आती है।.   जिस जातक के द्वादश भाव में बृहस्पति हो, तो उसका द्रव्य अच्छे कार्यों में व्यय होने के पश्चात् भी, अभिमानी होने के कारण, उसे यश प्राप्त नहीं होता है।. निर्धन ,भाग्यहीन, अल्प संतति वाला और दूसरों को किस प्रकार से ठगा जाए, सदैव ऐसी चिंताओं में वह लिप्त रहता है।. वह रोगी होता है और अपने कर्मों के द्वारा शत्रु अधिक पैदा कर लेता है।. उसके अनुसार यज्ञ आदि कर्म व्यर्थ और निरर्थक हैं।. आयु का मध्य तथा उत्तरार्द्ध अच्छे होते है।. इस प्रकार यह अनुभव में आता है कि गुरु कितना ही शुभ ग्रह हो, लेकिन यदि अशुभ स्थिति में है, तो उसके फलों में शुभत्व की कमी हो जाती है और अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं और शुभ स्थिति में होने पर गुरु कल्याणकारी होता है। ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय वाराणसी 9450537461

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ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय
9450537461
posted Sep 17, 2017 by anonymous

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कुंडली में सप्तम भाव पति-पत्नी एवं व्यापर से सम्बंधित    कुंडली-में-सप्तम-भाव सप्तम भाव सप्तम भाव काम त्रिकोण का दूसरा त्रिकोण कहलाता है | काम त्रिकोण में तृतीय भाव हमारा बल (वीर्य) रूप होता है और जैसा कि त्रिकोण के नाम से ही पता चलता है कि काम अर्थात कामवासना का मूल या जड़ अर्थात वीर्य अर्थात तृतीय भाव होता है इसलिए तृतीय भाव काम त्रिकोण का पहला भाव होता है इसी प्रकार दूसरा काम त्रिकोण सप्तम भाव अर्थात हमारी पत्नी (कामिनी) जो कि काम अर्थात वीर्य की सहायक होती है और इसी तरह तीसरा काम त्रिकोण इच्छा पूर्ति का होता है अब काम त्रिकोण के चक्र को आप इस तरह समझ सकते हैं जैसे वीर्य यानी तृतीय की उत्पत्ति होती है तो सप्तम अर्थात पत्नी उसे ग्रहण करती हैं जिसके फलस्वरूप हमारी इच्छा यानी कि 11वां भाव पूरा हो जाता है इसी तरह काम त्रिकोण का चक्र चलता रहता है | परिचय – सप्तम भाव मुख्य रूप से सहयोगी का कहा जाता है और एक सहयोगी हमारी पत्नी भी होती है, जो कि जीवन भर हमारे साथ सहयोग करके चलती है | तथा जीवन संगिनी कहलाती है | इस तरह एक सहयोगी हमारे वह भी होते हैं जो हमारे साथ किसी चीज अथवा कार्य में साझेदारी कर के चलते हैं, जैसे पार्टनरशिप में काम करना अथवा लेन देन साथ ही सप्तम भाव विवाह का भी होता है और विवाह तभी होता है जब कोई बीच मे बिचौलिया हो इसलिये बिचौलियो का भी सप्तम भाव ही होता है | भाव भावात के अनुरूप – सातवां भाव दूसरे भाव से छटा होता है इसलिये यह हमे बताता है कि धन प्राप्ति के लिये हमे कितना संघर्ष करना पड़ेगा क्यूंकि पत्नी के आने के बाद ही हमे धन संचय के लिये संघर्ष करना होता है | हमारे मामा मौसियो के धन की स्थिति भी यही भाव बताता है| दूसरे भाव के अनुरूप सातवां भाव दाल,दूध ,घी,गुड, शर्बत व सूप ,पान ,तला हुआ स्वादिष्ट भोजन भी बताता है| सातवें भाव को अन्य नामो जैसे- अस्त,अध्वन,मद,चित्तोत्थ,गमन,मार्ग,द्यून, जामित्र,काम,सम्पत,स्मर से भी जाना जाता है| यह शरीर मे भीतरी प्रजन्न अंग ,गुदा मार्ग,वीर्यवाहिनी नली,गुप्तांगो का रक्त संचार, गुर्दे , मल मूत्र कोष को भी बताता है| यह भाव मार्ग, सड़क, परदेस, समुद्र पार को भी बताता है| तीसरे भाव से पंचम होने के नाते सातवां भाव हमारे पराक्रम को अतिरिक्त सफल बनाने वाली बुद्धि व योजना प्रदान करता है जैसा कि हमारी पत्नी हमे समय-समय पर कहती है कि अमुक काम इस ढंग से करो | साथ यह भाव हमारे छोटे भाई बहनो के बच्चो की स्थिति भी बताता है व उनके प्रेम संबधो को भी | अक्सर आपने देखा है कि देवर (तृतीय) भाव भाभी(सातवें भाव) से स्नेह संबध रखते है वो यहि कारण है सप्तम भाव तीसरे से पंचम होता है| चतुर्थ भाव से चौथा होने के कारण सातवां भाव हमारे घर-जायदाद ,माता के सुख को भी बढ़ा देता है क्यूंकि सातवें भाव अर्थात पत्नी के आने के बाद घर की सुख सुविधा मे चार चांद लग जाते है तथा माता को भी बहु(७भाव) से सुख मिलता है | इसी तरह बहु यानी सातवे भाव की वजह से ही हमारी पैतृक जमीन जायदाद हमारे हिस्से मे आने से हम उसका सुख ले पाते है| सातवां भाव पंचम से तीसरा होता है इसलिये यह हमारी योजना व बुद्धि को मिलने वाले अतिरिक्त बल को दर्शाता है जैसे पत्नी की सलाह व सहायता| साथ हमारी संतान के बल पराक्रम की हालत भी यही भाव बताता है| सातवां भाव छटे भाव से दूसरा होता है इसलिये यह हमारे शत्रु की धमकी व उसकी धन स्थिति का विवरण भी देता है साथ ही मामा मौसियो कि धन स्थिति भी यही भाव बताता है| चोर अगर छटा भाव है तो सातवां चुराया गया सामान है| सातवां भाव आठवे से 12वां होने से हमारी आयु मे होने वाली क्षति या गिरावट को बताता है | इसलिये यह मारक भाव कहा जाता है| सातवां भाव नवम से 11वां होने कारण हमारे भाग्य व पिता को मिलने वाले लाभ को बताता है क्यूंकि सातवें (पत्नी ) के कारण ही हमारे पिता के क्षेत्र की वंश वृद्धि होती है तथा हमारा भाग्य भी अक्सर विवाह के बाद ही लाभ देता है| दशम भाव से दशम होने के कारण सतवां भाव हमारे पद-प्रतिष्ठा को अतिरिक्त पद-प्रतिष्ठा दिलाने वाला होता है क्यूंकि सातवें(पत्नी) के कारण कई बार हमे खूब पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है | साथ ही यह भाव हमारे कार्य क्षेत्र मे अतिरिक्त कार्य जैसे अपना काम ,बिजनेस, साझेदारी का काम या व्यापार भी यही भाव दर्शाता है| सतवां भाव एकादश भाव से नवम होता है इसलिये यह हमारी आय व लाभ मे होने वाली उन्नति को भी दर्शाता है इसलिये यह डेली इनकम का भाव भी कहा जाता है| साथ ही यह भाव हमारे लाभ व आय के लिये होने वाले धार्मिक कृत्यो को भी बताता है क्युकिं हमारी पत्नी ही हमारे लाभ के लिये पूजा-पाठ इत्यादी करती रहती है| सातवां भाव 12वें से आठवां होने के कारण हमारे व्यसनों ,नशे खर्चो व निवेशो जैसी क्रियाओ के करने वाला होता है क्यूंकि हमारी पत्नी ही इन सब चीजो से हमे अलग कराने का प्रयास करती है अथवा अपनी पत्नी के कारण ही हमे इन उपरोक्त आदतो पर संयम रखना पडता है| सप्तम भाव का महत्व – सातवें भाव का हमारे जीवन में बड़ा ही महत्व होता है सातवा भाव विवाह स्थान होने के नाते यह हमारे जीवन का सबसे अहम स्थान होता है क्योंकि विवाह है तो पत्नी है और पत्नी है तो बच्चे हैं और बच्चे हैं तो अपना दुनियादारी में नाम है और वंश है| सातवा भाव यही तक सीमित नहीं अपितु यह तो बहुत बड़े बड़े कारनामे लेकर आता है हमारी जिंदगी में जैसे कहा जाता है कि – ” हर कामयाब व्यक्ति के पीछे एक औरत का हाथ होता है |” अर्थात दुनिया में जितने भी अधिकतर लोग बड़े बड़े कारनामे करते देखे गए हैं सब के पीछे किसी न किसी औरत की कहानी छिपी है| यहां तक कि महर्षि पराशर ने सप्तम व सप्तमेश के लग्न ,पंचम,नवम से योग करने को राजयोग का नाम दिया है क्युंकि अगर हमारे लग्न(शरीर) ,पचंम(बुद्धि व योजना) ,नवम(धर्म, भाग्य) अगर कोई अच्छा साथी अथवा हमसफर अर्थात सप्तम भाव मिल जाये तो हम हर मुश्किल से आसानी से टकरा जाते है और इसी के साथ हम सहारे से कहां से कहां तक पहुंच सकते है आप अदांजा लगा सकते है| इस बात को मायने मे आप फिल्मी गीत की पंक्ति से भी समझ सकते है कि – “जिंदगी हर कदम इक नयी जंग है| जीत जायेंगे हम तू अगर संग है |” यही बात दूसरा गीत बताता है – “साथी हाथ बढाना, एक अकेला थक जायेगा, मिलकर बोझ उठाना” अर्थात कोई साथी या हमसफर हमारे साथ हो तो हर राह हमे आसान सी नजर आने लगती है| सातवें भाव का हमारे जीवन मे इतना महत्व है कि इसके बारे मे जितना लिखो उतना कम है| इसके लिये आप श्री शिव-शक्ति के आधार पर भी समझ सकते है कि कैसे ये दो होकर भी एक है| इसी तरह इस लेख के माध्यम से ज्योतिषिय जानकारी के साथ ही आपको एक बात कहना चाहूंगा कि अगर आपके पास भी कोई योग्य हमसफर या साथी है तो उसे दूर मत होने दें | अच्छे-बुरे वक्त को आपसी सलाह-समझौते से लेकर चलें| इसी तरह महर्षि पराशर व सभी विद्ववानो ने सप्तमको केन्द्र स्थान का नाम दिया है किसी ग्रह की केन्द्र की स्थिति उसे 60षष्टियांश बल देती है| सप्तम भाव व सप्तमेश पर अगर शुभ प्रभाव है तो उपरोक्त सभी बातो मे शुभ फल मिलते है अगर अशुभ प्रभाव हो तो अधिकांशतः प्रतिकूल परिणाम मिला करते है  ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय 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जानिए किसको मिल सकती है सरकारी नौकरी |   १.  यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,   २.  यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का हो तो।   ३.  मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.   ४.  यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।   ५.  लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।   ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय वाराणसी 9450537461
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