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कुंडली के कौन से योग बनाते हैं आपको चिकित्सक(Doctor)

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आपकी कुंडली में ऐसे कौन से ग्रह संयोजन होते हैं, जो आपको मेडिकल फील्ड में काम करने के लिए प्रेरित करते हैं अर्थात् डॉक्टर बनने के लिए ग्रहों का क्या गठबंधन होना आवश्यक है, ताकि आप एक कुशल और सफल चिकित्सक बन सकें। सफल चिकित्सक बनने के लिए कुंडली के विशेष भाव कुंडली का चतुर्थ और पंचम भाव हमारी शिक्षा और हमारी बुद्धि के बारे में बताता है। इन दोनों से जातक की शिक्षा और उसकी सोच का पता चलता है और यदि वह मेडिकल क्षेत्र में रुचि रखता है तो इसका ज्ञान भी इन भावों से लग सकता है। उपरोक्त तीन भावों के अतिरिक्त, कुंडली का छठा, आठवाँ और बारहवाँ भाव भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि छठा भाव रोग का भाव है, बारहवाँ भाव अस्पताल का भाव होने के कारण उपचार का भाव है और आठवां भाव आयु का भाव है। साथ ही यह अस्पताल में काम करने वालों और रोग निदान के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण भाव है। प्रथम भाव अर्थात लग्न शरीर है और और हम स्वयं हैं। द्वितीय भाव धन भाव होने के साथ-साथ हमारा वाणी भाव भी है। एकादश भाव से आमदनी और कार्य में सफलता का पता लगता है। इन भावों के अतिरिक्त दशम भाव कार्य और व्यवसाय का विशेष भाव भी है, इसलिए एक कुशल चिकित्सक बनने के लिए इन सभी भावों का समावेश अत्यंत आवश्यक है। कुंडली में डॉक्टर बनने के योग आज के समय में डॉक्टरी का पेशा एक अत्यंत महत्वपूर्ण पेशा माना गया है क्योंकि जहां डॉक्टर रोगी की गंभीर रोगों से लड़ने में मदद करता है और उसे नया जीवन प्रदान करता है ऐसे में यदि आपके मन में यह इच्छा है कि आप अथवा आपकी संतान डॉक्टर बने तो आप कुंडली में उपस्थित ग्रहों के संयोजन से यह जान सकते हैं कि क्या आपकी कुंडली में एक सफल चिकित्सक बनने का योग उपस्थित हैं। डॉक्टर बनने हेतु मुख्य ग्रह किसी भी पेशे के लिए कुछ ग्रह विशेष अपना योगदान देते हैं। ऐसे ही चिकित्सक बनने के लिए कुछ ग्रहों की विशेष भूमिका मानी गई है। आइए जानते हैं कौन से हैं वे ग्रह: सूर्य सूर्य ग्रह सभी ग्रहों का राजा है और यह आरोग्य का कारक होने के कारण स्वास्थ्य के लिए मुख्य ग्रह माना गया है। यह आपके अंदर आत्मबल पैदा करता है। यदि सूर्य मजबूत स्थिति में होकर चंद्रमा बृहस्पति या मंगल के साथ कुंडली के केंद्र भावों में हो तो चिकित्सा के क्षेत्र में सफल बनाता है। चंद्रमा चंद्रमा सभी औषधियों का कारक ग्रह है, इसलिए किसी भी डॉक्टर के लिए औषधियों का ज्ञान आवश्यक है। यही वजह है कि चंद्रमा का महत्वपूर्ण स्थान है। यदि कुंडली में चंद्रमा पाप ग्रहों से प्रभावित हो और कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो अथवा इन भावों का स्वामी होकर दशम भाव में हो तो चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नति देता है। गुरु गुरु ज्ञान का मुख्य कारक ग्रह है और एक डॉक्टर के लिए आवश्यक है कि उसे स्वयं को अपडेट रखने के लिए अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु रहना चाहिए, इसलिए बृहस्पति का महत्वपूर्ण योगदान है। गुरु को जीव कारक कहा जाता है। यदि गुरु मजबूत है तो व्यक्ति एमबीबीएस जैसी पढ़ाई कर सकता है। गुरु के पीड़ित होने की स्थिति में यदि कुंडली में चिकित्सक बनने के अन्य योग विद्यमान हैं तो वह आयुर्वेदिक अथवा होम्योपैथिक चिकित्सा में हाथ आजमा सकता है। मंगल साहस और पराक्रम का कारक है तथा अस्त्रों और शास्त्रों का भी कारक है। डॉक्टर को अनेक औज़ारों से काम करना पड़ता है और चीर फाड़ के कार्य भी करने पड़ते हैं, जिसके लिए मंगल अति आवश्यक है। मंगल का छठे अथवा दसवें भाव से संबंध बनाना विशेष रूप से शल्य चिकित्सक बनाने में सहायक होता है। शनि शनि व्यक्ति को गंभीरता देता है और सेवा भावी बनाता है तथा यह टेक्निकल शिक्षा और कौशल देने में माहिर ग्रह है, इसलिए शनि ग्रह का भी बड़ा योगदान है। यदि शनि ग्रह का प्रभाव दशम भाव अथवा दशम भाव के स्वामी पर हो और शनि ग्रह छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी हो और पाप ग्रहों के साथ हो तो चिकित्सा के क्षेत्र में मजबूती देता है। राहु राहु एक चमत्कारी ग्रह है और डॉक्टरी विद्या के लिए जिस शिक्षा की आवश्यकता होती है, उसके लिए राहु भी परम आवश्यक है। यदि राहु छठे भाव में हो और दशम भाव के स्वामी या दशम भाव से संबंध बनाए और पाप ग्रहों से संबंधित हो तो चिकित्सक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रहों की युति एवम् संयोग और चिकित्सा पद्धति वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की युति को अत्यंत महत्व दिया जाता है क्योंकि किसी भाव में एक से अधिक ग्रहों की उपस्थिति अलग प्रकार से फल देने में सक्षम होती है। शरीर से संबंधित अलग-अलग विभाग होते हैं और अलग-अलग डॉक्टर। इसी प्रकार किस प्रकार का ग्रह युति संबंध किस प्रकार की चिकित्सा में महारत देता है, यह जानने के लिए कुछ विशेष ग्रह युतियों का वर्णन इस प्रकार है: यदि आपको सर्जन अर्थात् शल्य चिकित्सक बनना है तो उसके लिए मंगल की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि आप मनोरोग से संबंधित चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हैं तो आपकी कुंडली में चंद्रमा, बुध, शनि, राहु और केतु का संयोग होना चाहिए। यदि आप बाल रोग विशेषज्ञ बनना चाहते हैं तो उसके लिए आपकी कुंडली में चंद्रमा और बुध का सुंदर संयोग आवश्यक है। हृदय रोग विशेषज्ञ बनने के लिए कुंडली में सूर्य और मंगल की आवश्यकता होती है। हड्डी रोग विशेषज्ञ अर्थात् ऑर्थोपेडिक्स के लिए शनि और मंगल की मजबूत स्थिति आवश्यक है। कान नाक गला रोग विशेषज्ञ अर्थात् ईएनटी के लिए मंगल और बुध ग्रह का संयोजन आवश्यक है। कुंडली में मंगल और केतु की युति हो या मंगल शनि अथवा बुध, शनि अथवा सूर्य, मंगल अथवा चंद्र, शनि की युति हो तो व्यक्ति एक कुशल डॉक्टर होने के साथ सर्जरी अथवा शल्य चिकित्सा में सफल बन सकता है। शनि और सूर्य की विशेष और मजबूत व्यक्ति व्यक्ति को दंत चिकित्सा में अग्रणी बनाती है। यदि सूर्य, बुध और शुक्र की युति हो तो भी व्यक्ति दांतो का डॉक्टर बन सकता है। सूर्य और शुक्र की युति ह्रदय रोग, स्त्री रोग विशेषज्ञ अथवा न्यूरो सर्जन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सूर्य, मंगल और बुध की युति डॉक्टरी पेशे के लिए एक अच्छी युति मानी गई है। यदि कुंडली में गुरु और शुक्र की युति हो तो व्यक्ति नेफ्रोलॉजी में सफलता प्राप्त कर सकता है। शनि और राहु की युति होने पर व्यक्ति एनेस्थीसिया देने वाला पेशा अपना सकता है। औषधि विज्ञान में महारत प्राप्त करने के लिए राहु और सूर्य की युति आवश्यक है। यदि कुंडली में गुरु और शनि की युति हो तो यह गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के लिए अच्छी मानी जाती है। न्यूरोलॉजी में सफल करियर बनाने के लिए बृहस्पति और बुध की युति अच्छी होती है। यदि कुंडली में राहु मंगल और गुरु का विशेष संयोग है तो व्यक्ति ऑन्कोलॉजी विभाग में डॉक्टर होता है। कुंडली में शुक्र, शनि और केतु की युति अथवा मजबूत संबंध होना और ऐसा संबंध वृश्चिक राशि में हो तो विशेष रूप से व्यक्ति गुप्त रोग विशेषज्ञ बन सकता है। गुरु और बुध की युति ग्रंथि रोग का डॉक्टर बनने में सहायक होती है। यदि व्यक्ति की कुंडली में शनि, राहु और केतु का मजबूत संयोग है तो ऐसा व्यक्ति जीवन रक्षक दवाइयाँ व टीके से संबंधित काम करता है। यदि व्यक्ति की कुंडली में राहु मजबूत है तो ऐसा व्यक्ति एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड जैसे तकनीकी कार्य में दक्षता रखता है। कुछ अन्य विशेष योग कुंडली में उपरोक्त ग्रह स्थिति के अलावा कुछ विशेष योग होने पर व्यक्ति मेडिकल फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल होता है। यदि कुंडली के छठे और आठवें भाव का सम्बन्ध यदि पांचवें और दसवें भाव या इनके स्वामियों से हो तो व्यक्ति कुशल चिकित्सक बन सकता है। सूर्य, मंगल और बृहस्पति यदि दशम भाव में हों तो व्यक्ति डॉक्टर बन सकता है। यदि शुक्र और बृहस्पति का संबंध कुंडली के छठे अथवा बारहवें भाव में बने तो व्यक्ति चिकित्सक बन सकता है। यदि कुंडली के पांचवे, नवें और दसवें घर से सूर्य, शनि और राहु का संबंध हो तो मेडिकल फील्ड में जाने के योग बनते हैं। सूर्य और बुध की युति हो तथा गुरु केंद्र भाव में हो और चंद्रमा अष्टम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति देता है। इस प्रकार जातक की कुंडली में कुछ ग्रहों विशेष की उल्लेखनीय स्थिति होने पर व्यक्ति डॉक्टरी को पेशे के रूप में अपना सकता है और अपने जीवन में एक सफल चिकित्सक बन सकता है। यदि आप डॉक्टर बनना चाहते हैं और आपकी कुंडली में भी उपरोक्त में से कुछ योग विद्यमान हैं और उन ग्रहों से संबंधित महादशा अथवा अंतर्दशा चल रही है तो आपको उन ग्रहों को मजबूत बनाने के लिए उपाय करने चाहिए ताकि आप मेडिकल फील्ड में जा सकें। अपने अंदर सेवा भाव रखें ताकि आप जीवन में सफल हो सकें क्योंकि चिकित्सक बनने के लिए सर्वप्रथम आपके अंदर मानवीय भावनाएं और सेवा का भाव होना अति आवश्यक है।

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कुंडली के कौन से योग बनाते हैं आपको चिकित्सक(Doctor)
posted Apr 27, 2020 by Deepika Maheshwary

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इस संसार में अपने सपनों का घर ख़रीदना हर किसी की ख़्वाहिश होती है। आपका यह ख़्वाब कब पूरा होगा? आप यह ज्योतिष शास्त्र की मदद से जान सकते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारी जन्म कुंडली में घर, ज़मीन या प्रॉपर्टी ख़रीदने जैसे विशेष मामलों का भी पता चलता है। ग्रहों व नक्षत्रों का योग हमें इस बात का संकेत करते हैं। विशेषकर ज्योतिषीय दशा पद्धति एवं ग्रहों की अनुकूल चाल से इन चीज़ों को ज्ञात किया जाता है। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार घर, ज़मीन या अन्य प्रकार की अचल संपत्ति को ख़रीदने के लिए जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भाव इन चीज़ों को ख़रीदने के शुभ समय की सही व्याख्या करता है। जन्मपत्री में चौथा भाव मानसिक शांति, ख़ुशी, माता, घरेलू जीवन, रिश्तेदार, घर, आत्म समृद्धि, आनंद, वाहन, ज़मीन, पैतृक संपत्ति, शिक्षा आदि को प्रदर्शित करता है। इसको लेकर कुछ मुख्य तथ्य इस प्रकार है :- यदि जन्म पत्रिका में चतुर्थ भाव का स्वामी, प्रथम भाव के स्वामी के साथ हो और त्रिकोण अथवा केन्द्र भाव में स्थित हो तो, यह स्थिति जातक के लिए एक से अधिक घर अथवा प्रॉपर्टी ख़रीदने का संकेत करती है। यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में बुध ग्रह तृतीय भाव में हो और चौथे भाव का स्वामी शुभ स्थिति में हो तो उस जातक के लिए यह स्थिति आकर्षक घर ख़रीदने की होती है। यदि कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी अपनी ही राशि अथवा नवांश में हो और उसकी राशि उच्च स्थिति में तो यह अवस्था जातक को एक आरामदेह घर या प्रॉपर्टी दिलाती है। यदि कुंडली के चतुर्थ भाव में ग्रह उच्च अवस्था में तो जातक एक से अधिक घरों एवं ज़मीन जायदादों का मालिक बनता है। यदि कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी मित्र राशि या स्वयं की राशि में स्थित हो अथवा बलित हो तो यह अवस्था किसी जातक को आरामदेह घर, वाहन, ज़मीन आदि दिलाती है। नवम भाव का स्वामी केन्द्र में हो और चतुर्थ भाव का स्वामी अपनी मित्र राशि में स्थित हो या फिर चतुर्थ भाव में ग्रह का उच्च होना सुंदर घर दिलाता है। यदि किसी की जन्म कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल/शनि/शुक्र के साथ शुभ योग में हो तो यह स्थिति जातक को एक से अधिक सुंदर घरों को ख़रीदने का संकेत करती है। बृहस्पति, मंगल, शनि एवं शुक्र ग्रह की महादशा प्रॉपर्टी ख़रीदने के लिए शुभ होती है। घर, ज़मीन अथवा अन्य संपत्ति ख़रीदने में ग्रहों की भूमिका मंगल: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह ज़मीन का नैसर्गिक कारक होता है। शनि: ज्योतिष विज्ञान में शनि को ज़मीन अथवा प्रॉपर्टी के लिए दूसरा कारक ग्रह बताया गया है। शुक्र: वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह समृद्धि का कारक होता है। यदि इसकी कृपा हुई तो यह किसी भी जातक को सुंदर और आकर्षक घर दिला सकता है। वहीं शनि और मंगल आपको घर तो दिला सकते हैं परंतु उनकी साज-सज्जा के लिए इंटिरियर कार्य की आवश्यकता होती है जिसका कारक शुक्र ग्रह होता है। जैसा कि हमने आपको बताया है मंगल ग्रह ज़मीन का प्राकृतिक कारक होता है। लेकिन जिस स्थान पर आप रहते हैं उसके लिए मंगल और शुक्र ग्रह की जिम्मेदार होती है। घर, ज़मीन अथवा अन्य प्रॉपर्टी ख़दीरने में विभिन्न भाव का महत्व प्रथम भाव : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुण्डली में प्रथम भाव जातक के शारीरिक स्वभाव और उसके व्यक्तित्व को दर्शाता है। इस भाव से आपके मन में अपने घर अथवा संपत्ति को लेकर विचार बनते हैं। द्वितीय भाव : जन्मपत्रिका में दूसरा भाव धन एवं धन की बचत को दिखाता है। बिना धन के नई प्रॉपर्टी आदि को ख़रीदना संभव नहीं है। चतुर्थ भाव: कुंडली में यह भाव व्यक्ति की ख़ुशियों और उसके घर-मकान को दर्शाता है। इसलिए घर या प्रॉपर्टी ख़रीदने के लिए कुंडली में चतुर्थ भाव और इसके स्वामी की परिस्थिति को देखा जाता है। एकादश भाव: हिन्दू ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में ग्यारहवें भाव से किसी भी जातक की आय और लाभ के बारे में पता चलता है। यदि यह भाव हमारे लिए अनुकूल परिणामकारी हो तो इससे हमारी आय में वृद्धि और धन का लाभ होता है। वहीं धन से हम अपनी प्रॉपर्टी को बढ़ा सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार प्रॉपर्टी अथवा घर ख़रीदने का शुभ मुहूर्त महादशा को प्रॉपर्टी ख़रीदने के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय माना जाता है। प्रॉपर्टी ख़रीदने के लिए चतुर्थ/द्वितीय/एकादश/नवम भाव के स्वामी एवं उनमें अवस्थित ग्रहों की महादशा शुभ होती है। व्यक्ति की मध्य आयु में सूर्य ग्रह घर ख़रीदने का बड़ा कारक माना जाता है। चंद्रमा व्यक्ति की प्रारंभिक आयु में घर दिलाने का बड़ा कारक होता है। मध्य आयु में घर ख़रीदने के लिए मंगल ग्रह सबसे बड़ा कारक होता है। बुध ग्रह 32 से 36 साल की आयु में घर प्राप्त करने का कारक होता है। गुरु को 30 की आयु में घर प्राप्त करने का कारक माना जाता है। शुक्र और राहु ग्रह की वजह से व्यक्ति को शुरुआती उम्र में घर मिलता है। शनि और केतु के कारण व्यक्ति को 44 से 52 की उम्र में घर मिलता है। ज्योतिष के अनुसार प्रॉपर्टी में हानि का कारण यदि कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी चतुर्थ भाव से द्वादश भाव में अवस्थित हो अवथा नीच भाव में हो तो प्रॉपर्टी में हानि होने की संभावना है। यदि कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी 6, 8 और 12 भाव में हो तो संपत्ति में नुकसान हो सकता है। यदि कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी नीच में हो , चतुर्थ भाव में ग्रह की अनुपस्थिति हो और शनि और मंगल कमज़ोर स्थिति में हो तो भी जातक को प्रॉपर्टी, जमीन आदि में हानि का सामना करना पड़ता है।
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सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि भारत का यह ज्योतिष विज्ञान कितना सदुपयोग करने लायक है आप यह जान लें कि हमारे ऋषि प्रभु पराशर वैदिक ज्योतिष का जो उन्होंने सूत्र दिए वह आज अचंभित करने वाले हैं किसी की जन्म पत्रिका को देखकर यह बताया जा सकता है कि वह किस क्षेत्र में तरक्की करेगा उसको लाभ होगा तो आप भी जानिए क्या आप राजनीति में आप भविष्य बना सकते हैं या आप सेना पुलिस में जाकर देश की सेवा कर सकते हैं या आप वरिष्ठ अधिकारी बनकर देश की सेवा कर सकते हैं या आपकी कुंडली में डॉक्टर बनने के योग हैं या आज के जमाने की तकनीकी कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में आप विशेष योग्यता हासिल करके इंजीनियर बन कर अपने भविष्य को संवार सकते हैं इस प्रकार के ग्रह योग आपकी जन्मकुंडली में है अगर आप जान जाते हैं आपके लिए अच्छा होगा तो हमारे यहां फ्यूचर स्टडी ऑनलाइन ऐप के अंदर बहुत सारे विद्वान आपको दिखाई दे रहे हैं इन सभी विद्वानों की नॉलेज वैदिक लाल किताब केपी एस्ट्रोलॉजी फॉर मिस्ट्री वास्तु न्यूमैरोलॉजी एवं पारंपरिक ज्योतिष ज्ञान के साथ आधुनिक समावेश में आपको भविष्य के लिए अच्छी राय मिल सकती है तो हमारे विद्वानों से बात करने के लिए बहुत ही सरल तरीका है अगर आप अनलिमिटेड कॉल पर क्लिक करते हैं तो आपको समय की कोई लिमिट नहीं है बात करने में अन्यथा आप पर मिनट कॉल का ऑप्शन प्रयोग कर सकते हैं और आप अपने लिए भविष्य के लिए अच्छी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
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इंसान के जन्म से मृत्यु तक हृदय लगातार धड़कता रहता है। हृदय की यह गतिशीलता ही इंसान को सक्रिय बनाए रखती है। हृदय का पोषण रक्त और ऑक्सीजन के द्वारा होता है। हमारे शरीर को जीवंत बनाए रखने के लिए हृदय शरीर में लगातार रक्त का प्रवाह करता है। मनुष्य का हृदय एक दिन में लगभग एक लाख बार और एक मिनट में औसतन 60 से 90 बार धड़कता है। हृदय का काम शरीर में रक्त का प्रवाह करना है, इसलिए हृदय का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। आपका हृदय जितना स्वस्थ होगा आपका जीवन उतना ही सुख पूर्वक गुजरेगा। हालांकि आजकल की भागती-दौड़ती जिंदगी में कई लोगों को हृदय से संबंधित रोग हो रहे हैं क्योंकि खुद के लिए भी अब लोगों के पास वक्त नहीं है। यही वजह है कि हृदय रोगों का कारण ज्यादातर अव्यवस्थित दिनचर्या या खराब खान-पान होता है, परंतु बहुत से ऐसे ज्योतिषीय कारण भी होते हैं जिनकी वजह से लोगों को हृदय से संबंधित रोग घेर लेते हैं। हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण---- आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएँगे कि हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण क्या हैं। इसके साथ ही हम आपको कुछ ऐसे ज्योतिषीय उपचार भी बताएंगे जिनकी मदद से आप हृदय रोगों से खुद को बचा सकते हैं। तो आइए अब विस्तार से जानते हैं हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण और उनके उपचार:- चतुर्थ, पंचम भाव और इन भावों के स्वामियों की स्थिति जैसा कि हम सब जानते हैं कि इंसान के शरीर में हृदय बायीं ओर होता है और यह शरीर का वह अंग है जो रक्त को पूरे शरीर में पहुंचाता है। अब अगर ज्योतिष शास्त्र के नजरिये से देखा जाए तो कुंडली में स्थित बारह राशियों में से चतुर्थ राशि यानि कर्क राशि को हृदय का स्थान और पंचम राशि सिंह को इसके सूचक के रुप में देखा जाता है। हृदय से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए जातक की कुंडली में चतुर्थ, पंचम भाव और इन भावों के स्वामियों की स्थिति पर विचार किया जाता है। चौथे और पांचवे भावाें के स्वामियों पर यदि अशुभ ग्रहों की दृष्टि है या वो अशुभ ग्रहों के साथ हैं तो हृदय से जुड़े रोग हो सकते हैं। कुंडली में सूर्य की स्थिति ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य को हृदय का कारक माना जाता है। आपकी जन्म कुंडली में सूर्य का संबंध मंगल, शनि अथवा राहु-केतु के अक्ष में होने पर जातक को हृदय संबंधी विकार होते हैं। सूर्य अगर किसी नीच राशि में स्थित हो तो भी हृदय रोग हो सकते हैं। अगर सूर्य आपकी कुंडली में षष्ठम, अष्टम और द्वादश भावों के स्वामियों से संबंध बना रहा है तो हृदय विकार होने की पूरी संभावना रहती है। इसके अलावा सूर्य के पाप कर्तरी योग में होने पर भी हृदय से जुड़े रोग होते हैं। पाप कर्तरी योग कुंडली में तब बनता है जब किसी भाव के दोनों ओर पाप ग्रह स्थित हों। सिंह राशि के पीड़ित होने पर जिस जातक की कुंडली में सिंह राशि पीड़ित होती है अथवा उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो जातक को हृदय रोग घेर सकते हैं। इसके साथ ही कुंडली के चतुर्थ और पंचम भाव के पीड़ित होने अथवा उन पर नैसर्गिक पाप ग्रहों अथवा त्रिक (6-8-12) भाव के स्वामी ग्रह का प्रभाव होने पर भी हृदय से जुड़ी परेशानियां आ सकती हैं। चतुर्थ, पंचम भावों के स्वामियों के दूषित होने पर चतुर्थ, पंचम भावों के स्वामी यदि अशुभ ग्रहों से युति बनाकर दूषित हो रहे हैं तो भी हृदय रोग होने की संभावनाएं रहती हैं। यदि चतुर्थ, पंचम भावों के स्वामी तीव्र गति से चलने वाले ग्रहों से दूषित हो रहे हैं तो रोग ज्यादा दिन तक नहीं चलता या रोग बहुत गंभीर नहीं होता। वहीं अगर चतुर्थ, पंचम भाव धीमे चलने वाले ग्रहों से दूषित है तो रोग लंबे समय तक चल सकता है और रोग गंभीर भी हो सकता है। उपरोक्त ग्रह स्थिति होने पर इन ग्रहों की दशा और अंतर्दशा के दौरान हृदय रोग की संभावना बनी रहती है। इसलिए ऐसे जातकों को ग्रहों की दशा और अंतर्दशा के दौरान सावधान रहना चाहिए। सूर्य ग्रह को प्रबल करने के लिए सूर्य ग्रह की शांति के उपाय हृदय रोग के ज्योतिषीय उपचार ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा जीवन में आने वाली परेशानियों को तो हल किया ही जाता है, साथ ही साथ ज्योतिष शास्त्र हमें स्वस्थ जीवन जीने के लिए भी कई महत्वपूर्ण सुझाव उपलब्ध करता है। ज्योतिष शास्त्र की मदद से आप आने वाली मुश्किलों का भी पहले ही आकलन कर सकते हैं और जिन समस्याओं से आप जूझ रहे हैं उनका भी हल पा सकते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताएँगे कि कैसे हम ज्योतिषीय उपचारों का इस्तेमाल करके हृदय संबंधी विकारों या रोगों से बच सकते हैं। हृदय रोग से जुड़े ज्योतिषीय उपचार नीचे दिए गए हैं:- सूर्य को जल चढ़ाएँ हृदय को स्वस्थ रखने के लिए आपकी कुंडली में सूर्य का अनुकूल अवस्था में होना बहुत जरूरी है। यदि आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति अनुकूल नहीं है तो आपको प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल भरकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी आपको हृदय से जुड़े विकारों को दूर करने में मदद मिलेगी। चतुर्थ और पंचम भाव के अपने स्वामी ग्रहों को करें मजबूत हृदय रोगों से बचने के लिए आपको अपनी कुंडली के चतुर्थ और पंचम भाव के स्वामी ग्रहों को जानकर उनको मजबूत करना चाहिए। इसके लिए आप उन ग्रहों के बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं या उन ग्रहों से संबंधित रत्नों को धारण कर सकते हैं। सूर्य के बीज मंत्र का करें जाप हृदय रोगों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव के बीज मंत्र का नियमित पाठ करना भी लाभकारी होता है। सूर्य का बीज मंत्र नीचे दिया गया है: “मंत्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः” अपने इष्ट देव की करें पूजा अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना करना भी आपके लिए शुभ फलदायी रहता है और इससे हृदय से जुड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं। लेकिन आपको इस बात का ख़ास ख्याल रखना है कि इष्ट देव की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाए। इसमें किसी भी तरह की चूक न हो। इसके अतिरिक्त श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें अथवा भगवान विष्णु की उपासना करें। श्वेतार्क वृक्ष सिंचित करें श्वेतार्क वृक्ष लगाएँ और उसको जल से सिंचित करें इससे आपको लाभ होगा। यह वृक्ष हृदय रोगों को दूर करता है! **************
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