विवाह-वैवाहिक संबंध, वर्तमान संदर्भ By Astro. Rakesh Soni, Jaipur
Spouse परिवार का वह सदस्य होता है जो माता-पिता-भाई और बहिन की तरह प्राकृतिक रूप से हमसे जुडा हुआ नहीं होता है बल्कि हमारें स्वयं अथवा अभिभावकों के द्वारा चुना जाता है। चयन के criteria जाति, धर्म, सामाजिक-परम्पराओं, व्यक्तिगत पसंद आदि अनेक बातों पर निर्भर करते हैं किन्तु सबके मूल में यह भावना होती है कि दोनों ही Spouse के बीच एक ऐसा भावनात्मक संबंध रहे जो दोनों के जीवन को सार्थक और सुखी बनाये तथा आगे वंशवृद्धि भी करें। मानव जाति का सौभाग्य है कि अनेक सामाजिक परिवर्तनों के बावजूद आज भी यह संबंध, कहीं कम तो कहीं ज्यादा सफल हो जाता है। लेकिन यह भी देखने में आता है कि कभी-कभी यह संबंध matrimonial discord का ऐसा रूप ले लेता है कि बात मुकदमेबाजी-कोर्टकचहरी से भी आगे बढकर सौदेबाजी, षडयंत्र रचना, आत्महत्या और हत्या तक पहॅुंच जाती है। कहा जा सकता है कि यह सब पति-पत्नी या उनके परिवारजनों की विकृत सोच का परिणाम होता है और इससे बचने के लिये शिक्षा और संस्कारों में कुछ सुधार किये जाने चाहिये और यह बिल्कुल ठीक भी है।
लकिन आज जबकि Spouse का चुनाव classified advertisements या internet के द्वारा होता है तब दोनों पक्षों की पारिवारिक पृष्ठभूमि-संस्कार आदि की जानकारी की विश्वसनीयता की कोई guarantee नहीं रह जाती है।
ज्योतिषीयों के पास विवाह संबंधी समस्याओं को लेकर आने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुयी है। उनके प्रश्नों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समस्यायें प्रायः चार प्रकार की होती है।
ऽ विवाह विलम्ब से होना या बिल्कुल ही न होना
ऽ वैवाहिक जीवन में तनाव एवं गृह-क्लेश
ऽ विवाह.विच्छेद, अथवा
ऽ हिंसा, किसी भी सीमा तक ण्
गृह-क्लेश, सम्बंध विच्छेद, हिंसा आदि की घटनाये पहले भी होती थी। वैदिक ज्योतिष में spouse के चयन के कुछ parameters बताये गये हैं जिनसे अच्छे संबंधों की guarantee दावा किया जाता है। इसे उन्होंने गुणमिलान का नाम दिया। दक्षिण भारत में गुणमिलान के 10 और उत्तर भारत में 8 parameters तय किये गये जो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन से जुडी संभावित बातों यथा आचार.विचार, परस्पर प्रेम, संतान, जीवन के सुख.भोग आदि बातों से संबंधित है। लेकिन हमारा अनुभव है कि पुराना गुण-मिलान का तरीका आज के युग में, जब विवाह 25 से 35 या उससे भी अधिक आयु में होने लगा है काम नहीं दे पाता है।
ऐसा देखने में आ रहा है कि परम्परागत मिलान के तय 36 अंकों में से 32-34 अंकों तक प्राप्त होने पर भी विवाह असफल हो रहे हैं। अतः कहा जा सकता है कि वर्तमान में मिलान का परम्परागत तरीका सफल नहीं है।
विवाह या वैवाहिक सुख की दृष्टि से ऋषियों ने कुछ कारक या determinants परिभाषित किये हैं और उनके मूल्यांकन के परिमाप भी । ये अपनी शुभाशुभ स्थिति के अनुसार ही विवाह.सुख या कष्ट का संकेत देते हैं।
मेरे पास आ रहे वैवाहिक.तनाव या विच्छेद के केसों में दो बातें बराबर देखने में आ रही हैं। पहली यह कि किसी एक या दोनों के विवाहसुख का योग ही नहीं है अथवा स्पष्ट ही गृह-क्लेश के योग हैं। विवाह के पश्चात पति-पत्नी के मध्य परस्पर विचार न मिलने, सास का अपनी बहू से या बहू का अपनी सास से सामंजस्य न होने पर कलह आदि बातों से आरम्भ होने वाला मतभेद धीरे-धीरे पुलिस-मुकदमाबाजी तक पहॅुंचने लगता है। पति-पत्नी में परस्पर मारपीट, हत्या या आत्महत्या या इतर वैवाहिक संबंधों या चरित्रहीनता के आरोप अथवा अन्य मानसिक परेशानियों के कारण भी वैवाहिक जीवन नरक समान हो जाता है। मेरे पास कुछ केस ऐसे भी हैं जिनमें विवाह के अगले दिन ही विच्छेद का वातावरण आरम्भ हो गया। ऐसे केसेज में विवाह करने से पहले अच्छी तरह सोचविचार कर लेना चाहिये - बेहतर है कि विवाह ही न किया जाये।
दूसरी यह कि पति या पत्नी, दोनों में से किसी एक अथवा दोनों की ही जन्मपत्रिका में मानसिक तनाव, कुंठा या मनोरोग के योग उपस्थित है। इन योगों की पहचान करने में ज्योतिष की बडी भारी भूमिका पायी गयी है।