जन्म कुण्डली में मंगल और शुक्र उच्च राशि में हो, शनि व बृहस्पति त्रिकोण भाव में हो और लग्न में 40 से अधिक बिन्दु स्थित हो तब इसे राजयोग माना जाता है.
यदि लग्न, चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न तीनो में ही 30 बिन्दु स्थित है तब व्यक्ति अपने प्रयासों से जीवन में उन्नति करता है और आगे बढ़ता है.
यदि सूर्य और बृहस्पति अपनी-अपनी उच्च राशियों में 30 बिन्दुओ के साथ स्थित है और लग्न के बिन्दुओ की संख्या, अन्य भावों के बिन्दुओ से अधिक है व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है.
जन्म कुण्डली के चतुर्थ और एकादश दोनो भावों में प्रत्येक में 30-30 बिन्दु हो तब व्यक्ति 40 वर्ष की उम्र में समृद्ध होता है.
जन्म कुण्डली के लग्न, चन्द्र राशि, दशम और एकादश भाव में प्रत्येक में 30-30 बिन्दु हो और लग्न अथवा चंद्रमा, बृहस्पति से दृष्ट हो तब ऎसा व्यक्ति राजा के समान माना गया है.
जन्म कुण्डली में मंगल तथा शुक्र अपनी-अपनी उच्च राशियों में हों, शनि कुंभ्ह में हो और बृहस्पति धनु राशि में 40 बिन्दुओ के साथ लग्न में हो तब इसे राजयोगकारी माना गया है.
जन्म कुण्डली में उच्च का सूर्य लग्न में और चतुर्थ भाव में बृहस्पति 40 बिन्दुओ के साथ हो तब यह स्थिति भी राजयोगकारी मानी गई है.
जन्म कुण्डली में शुभ ग्रह केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हों और उनसे संबंधित सर्वाष्टकवर्ग के भावों में प्राप्त बिन्दुओ की संख्या द्वारा इंगित आयु का समय जातक के लिए अच्छा माना गया है.
पति-पत्नी की जन्म कुण्डलियों में एक-दूसरे की चंद्र राशि में 28 बिन्दु से अधिक होने पर वैवाहिक जीवन अच्छा होता है