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Vedic astrology how much beneficially

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Learn astrology
posted Sep 23, 2021 by Rakesh Periwal

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People are fond of the word "Luck" . Generally Luck means Athista or Fortune for them to get success without much effort.

Actually the word Luck is origin of the word from Lagna  or Ascendant in Horoscope.

According to Vedic Astrology 9th house signifying  fortune or Luck . If someone  wants to be a luckiest person then they should see who is 9th lord and try to use 9th lord gems, colors, direction etc., so that they will have a chance to become fortune in his/her life.

Here is the list of Lucky planets for each ascendant and colors. For identifying the correct gems, direction better check with your astrologer. If they use the color according to the Lagna in day to day life they will become Lucky and get more success in all his/her effort.

1) Mesa lagna - 9th lord is Jupiter the color of Jupiter is Yellow.
2)Virgo Lagna -9th lord is Saturn , Use the color Black.
3) Gemini Lagna -9th lord is Saturn , use the color Black
4) Cancer or Karkata Lagna-9th lord is Jupiter and the color of Jupiter is Yellow.
5) Leo Lagna - 9th lors is Mars and use the color Red.
6) Virgo Lagna -9th lord is Venus use the color sighning White.
7) Libra Lagna -9th lord is Mercury and use the color Green.
8)Scorpio Lagna -9th lord is Moon and use the color Normal white without much sighning.
9) Saggitarious Lagna -9th lord is Sun and use the color Orange.
10) Capricorn Lagna -9th lord is Mercury and use the color Green.
11) Aqurious Lagna -9th lord is Venus and use the color shining White.
12) Pisces lagna -9th lord is Mars and use the color Red.

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जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थानों को अशुभ माना जाता है। मंगल, शनि, राहु-केतु और सूर्य को क्रूर ग्रह माना है। इनके अशुभ स्थिति में होने पर दांपत्य सुख में कमी आती है।

-सप्तमाधिपति द्वादश भाव में हो और राहू लग्न में हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा होना संभव है।

-सप्तम भावस्थ राहू युक्त द्वादशाधिपति से वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है। द्वादशस्थ सप्तमाधिपति और सप्तमस्थ द्वादशाधिपति से यदि राहू की युति हो तो दांपत्य सुख में कमी के साथ ही अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है।

https://youtu.be/K-AOYPsJprM

-लग्न में स्थित शनि-राहू भी दांपत्य सुख में कमी करते हैं।

-सप्तमेश छठे, अष्टम या द्वादश भाव में हो, तो वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है।

-षष्ठेश का संबंध यदि द्वितीय, सप्तम भाव, द्वितीयाधिपति, सप्तमाधिपति अथवा शुक्र से हो, तो दांपत्य जीवन का आनंद बाधित होता है।

-छठा भाव न्यायालय का भाव भी है। सप्तमेश षष्ठेश के साथ छठे भाव में हो या षष्ठेश, सप्तमेश या शुक्र की युति हो, तो पति-पत्नी में न्यायिक संघर्ष होना भी संभव है।

-यदि विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करके उपरोक्त दोषों का निवारण करने के बाद ही विवाह किया गया हो, तो दांपत्य सुख में कमी नहीं होती है। किसी की कुंडली में कौन सा ग्रह दांपत्य सुख में कमी ला रहा है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लें।

विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं-

सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।

सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।

कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।

यदि सप्तम भाव में सम राशि है।

सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।

सप्तमेश बली है।

सप्तम में कोई ग्रह नही है।

किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।

दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।

सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।

ज्योतिष शास्त्रानुसार राहु तथा केतु छाया ग्रह हैं। राहु या केतु जिस भाव में बैठते हैं, उस भाव के स्वामी के समान बन जाते हैं तथा जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उस ग्रह के गुण ग्रहण कर लेते हैं। राहु, शनि के अनुरूप विच्छोदात्मक ग्रह हैं। अत: ये जिस भाव में होता है संबंधित भाव में विच्छेद कर देता है। उदाहरण के लिए ये चौथे भाव में होने पर माता से विच्छेद, पांचवें भाव में होने पर पुत्र से, सप्तम में होने पर पत्नी से, दसवें भाव में होने पर पिता से विच्छेद करा देता है। केतु ग्रह जिस ग्रह के साथ बैठता है उसके प्रभाव को बहुत अधिक बढ़ा देता है।

ऋषि पराशर मत में राहु की उच्च राशि वृषभ तथा केतु की उच्च राशि वृश्चिक मानी गई है। अन्य ज्योतिषियों ने राहु की उच्च राशि मिथुन तथा केतु की उच्च राशि धनु मानी है। वर्तमान में यही मत प्रभावी है। अत: ये दोनों ग्रह अपना शुभाशुभ फल किसी अन्य ग्रह के सहयोग से दे पाते हैं। तीसरे, छठे, दसवें भाव का कारक ग्रह राहु है। दूसरे तथा आठवें भाव का कारक ग्रह केतु है। राहु-केतु से निर्मित विशिष्ट अशुभ योग- [1] जब चंद्र, सूर्य ग्रह राहु के संसर्ग में आते हैं, तो कुंडली में ग्रहण योग निर्मित होता है। जो कि एक अशुभ योग है।

कौन से ग्रह वैवाहिक जीवन में पूर्ण सुख पाने में बधारूप है ? इस पर आज विचार करते है |

कुंडली में पति या पत्नी का सुख सातवे भाव से देखा जाता है , शनि-राहु-केतु-सूर्य-मंगल पाप ग्रह है, अगर सातवे स्थान से या सातवे स्थान के मालिक से जब इन ग्रहों का सम्बन्ध होता हे तब वैवाहिक जीवन में सुख-शांति मिलने मे अवरोध-बाधाओका सामना करना पड़ता है , पूर्ण सुख मिल नहीं पाता है ....

सब से ज्यादा परेशानी बाधाए , राहु का सातवे स्थान या सातवे स्थान के मालिक से किसीभी प्रकार से कुंडली में सम्बन्ध बनता है , तब अनुभव होती है , राहु अन्धकार है और जब वह सातवे स्थान में बेठता है , तो पति या पत्नी स्थान सम्बंधित शुभ फल मिलनेमे अवरोध कारक बनके ही रहता है , इस राहू के साथ मंगल का भी सम्बन्ध हो जाता है , तब तो भगवान ही बचाए | यह "अंगारक योग" लग्न जीवन में वियोग, विवाद, अपमृत्यु , तलाक तक की नोबत लेन में कारन रूप बनता दिखाई दिया है ..|

शनि का सम्बन्ध सातवे स्थान से विवाह में विलम्ब तक ही सिमित रहता है .....

अगर सातवे स्थान में शनि+ राहु के साथ अगर सूर्य या चन्द्र बेठता है, तो वैवाहिक जीवनमे सुख-शांति की आशा रखना ही व्यर्थ हो जाता है ..."विष योग" और "ग्रहण योग" होने से वैवाहिक जीवन को मानो ग्रहण सा लग जाता अनुभव होता है ...

अगर कुंडली में ऐसा कोई भी योग बनता हो तो पहले इसके उपाय करे और कुंडली मिलकर ही शादी-विवाह सम्बंधित निर्णय ले तो संभवित अशुभ फलो को टाला जा सके |

ग्रहों के उपाय सम्बंधित विचार

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