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चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से 10 अप्रैल 2022

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चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है। नव संवत्सर का प्रारंभ होगा। हिंदू नववर्ष के रूप में मनाया जाता है । इन 9 दिनों में मां के दिव्यरूपा की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है। इस बार नवरात्रि 9 दिन की है। जो 2 अप्रैल से शुरू होकर 10 अप्रैल को समाप्त हो रही हैं । *नवरात्रि 9 दिन की* 1. प्रथम 2 अप्रैल शनिवार 2.द्वितीया 3अप्रैल रविवार 3. तृतिया 4 अप्रैल सोमवार 4. चतुर्थी 5 अप्रैल मंगलवार 5. पंचमी 6 अप्रैल बुधवार 6.षष्ठी 7 अप्रैल गुरुवार 7. सप्तमी 8 अप्रैल शुक्रवार 8. अष्टमी 9 अप्रैल शनिवार 9. नवमी 10 अप्रैल रविवार चैत्र नवरात्रि के दौरान घटस्थापना उत्तर या पूर्व दिशा की ओर करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री के अनुसार घटस्थापना का मुहूर्त 2 अप्रैल दिन शनिवार को प्रात: शुभ चौघड़िया 7:46 से 9:20 तक तथा अभिजीत मुहूर्त 12:02 से 12:52 दोपहर तक। स्थिर लग्न 8:26 से 10:22 प्रातः है। वसंत नवरात्र में दुर्गा आराधना विशेषकर श्रेष्ठ है। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ, दुर्गा चालीसा, देवी मंत्र, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, इस मंत्र का जप करने से सारी इच्छाओं की पूर्ति होती है। दुर्गा सप्तशती व्यास जी द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण से ली गई है इसमें 700 श्लोक व 13 अध्यायों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती का नाम दिया गया है। तंत्र शास्त्रों में इसका सर्वाधिक महत्व प्रतिपादित है और तांत्रिक क्रियाओं का इसके पाठ में बहुधा उपयोग होता है दुर्गा सप्तशती में 360 शक्तियों का वर्णन है। शास्त्री जी ने बताया है कि शक्ति पूजन के साथ भैरव पूजन भी अनिवार्य है। दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र ब्रह्मवशिष्ठ विश्वामित्र ने साबित किया है, शापोद्धार के बिना पाठ का फल नहीं मिलता दुर्गासप्तशती के 6 अंगों सहित पाठ करना चाहिए। कवच,अर्गला,कीलक, और तीनों रहस्य महाकाली महालक्ष्मी और महासरस्वती का रहस्य बताया गया है। दुर्गा सप्तशती के चरित्र का क्रमानुसार पाठ करने से शत्रुनाश और लक्ष्मी कि प्राप्ति व सर्वदा विजय होती है, सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
posted Mar 28, 2022 by anonymous

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चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 25 मार्च से होने जा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखें तो इस समय पंचक लगा रहेगा। बहुत सारे लोगों के मन में नवरात्रि का पंचक में शुरू होने को लेकर कई सवाल होंगे, जैसे इस दौरान पूजा करना शुभ रहेगा या नहीं! क्या आपके द्वारा की गयी पूजा फलदायक होगी ? या उसका पूर्ण फल आपको मिलेगा या नहीं मिलेगा? पंचक के दौरान कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए ? आपके ऐसे सभी सवालों का जवाब हम आपको देंगे। तो चलिए आपको बताते हैं नवरात्रि और पंचक से जुड़ी हुई कुछ खास बातें- नवरात्रि से पहले ही लग जाएगा पंचक नवरात्रों की शुरुआत 25 मार्च, बुधवार से हो रही है, जबकि पांच दिनों तक चलने वाले पंचक 21 मार्च से शुरू हो जाएंगे। पंचक की शुरुआत 21 मार्च, शनिवार को धनिष्ठा नक्षत्र में प्रातः 6:20 पर होगी, और पंचक की समाप्ति 26 मार्च, गुरुवार को रेवती नक्षत्र में प्रातः 7:16 पर होगी। शनिवार से शुरू होने वाले पंचक मृत्यु पंचक कहलाते हैं। यह पंचक काफी घातक और अशुभ पंचक माना जाता है। इस साल मृत्यु पंचक में ही नवरात्रों की शुरुआत हो रही है। पंचक शुभ या अशुभ? पंचक एक ऐसा समय होता है, जिसे ज्योतिष में अशुभ मानते हैं। आमतौर पर पंचक को लेकर लोगों के मन में एक डर होता है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। जबकि आपको पता होना चाहिए कि सभी शुभ कार्यों के लिए पंचक वर्जित नहीं होता है। नवरात्र शक्ति की आराधना का त्यौहार होता है। हम सभी जानते हैं कि नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं, और सच्चे मन से माँ दुर्गा की पूजा-पाठ, हवन आदि करते हैं। इतने पावन समय में पंचक मान्य नहीं होता है, इसीलिए चैत्र नवरात्रि के दौरान पूजा आदि में किसी तरह की बाधा नहीं आएगी और आप पूरी भक्ति के साथ मां दुर्गा की आराधना कर सकते हैं। क्या होता है पंचक ? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पांच नक्षत्रों के मेल से बनने वाले विशेष योग को पंचक कहा जाता है। पंचक धनिष्ठा नक्षत्र के प्रारम्भ से रेवती नक्षत्र के अंत तक का समय होता है, जिस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करना अच्छा नहीं माना जाता है। पंचक के दौरान भूलकर भी न करें ये काम पंचक के दौरान बेड या लकड़ी की कोई चीज़ बनवाना अच्छा नहीं माना जाता है। इसके अलावा पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय में घास, लकड़ी आदि जैसी जलने वाली वस्तुएँ इकट्ठी नहीं करते। दक्षिण दिशा में यात्रा भी इस समय में वर्जित माना जाता है, क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है। पंचक में जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, तो उस समय घर की छत नहीं बनवानी चाहिए। पंचक के दौरान शव का अंतिम संस्कार करना सही नहीं रहता, इसीलिए ऐसा करने से पहले किसी योग्य कर्मकांडी विद्वान की सलाह ज़रूर लेनी चाहिए।
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हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से नवरात्रि के त्यौहार को बेहद ख़ास माना जाता है। इस दौरान पूरे नौ दिनों तक देवी मान के विभिन्न नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि, देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करने से विभिन्न प्रकार के ग्रहों की शांति भी होती है। आज हम आपको मुख्य रूप से नवरात्रि के नौ दिनों के अंतर्गत देवी के उन सभी रूपों के साथ ही उन ग्रहों के बारे में भी बताने जा रहे हैं जिनकी पूजा करने से उनकी शांति हो सकती है। प्रथम दिन नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलीपुत्री को विशेष रूप से चंद्रमा का कारक माना जाता है। लिहाजा इस दिन विशेष रूप से माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के चंद्रमा ग्रह की शांति होती है। दूसरा दिन नवरात्रि के दूसरे दिन मुख्य रूप से दुर्गा माँ के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी विशेष रूप से मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करने से व्यक्ति के मंगल ग्रह की शांति होती है। तीसरा दिन नवरात्रि के तीसरे दिन खासतौर से देवी चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। माता चन्द्रघंटा को मुख्य रूप से शुक्रग्रह का कारक माना जाता है। इस दिन माता के इस रूप की पूजा अर्चना करने से विशेष रूप से शुक्र ग्रह की शांति होती है और व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि आती है। चौथा दिन नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन माँ के इस रूप की पूजा उन लोगों को अवश्य करनी चाहिए जिनकी कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो। सूर्य ग्रह की शांति के लिए श्रद्धा पूर्वक माता कुष्मांडा की पूजा की जानी चाहिए। पांचवां दिन नवरात्रि के पांचवें दिन खासतौर से देवी स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है। माँ स्कंदमाता को विशेष रूप से बुध ग्रह का नियंत्रण प्राप्त है। इस लिहाज से जिन व्यक्तियों को बुध ग्रह की शांति करनी हो उन्हें विशेषतौर पर आज के दिन माँ के इस रूप की पूजा जरूर करनी चाहिए। छठे दिन नवरात्रि के छठे दिन विशेष रूप से माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। माँ के इस रूप को मुख्य रूप से बृहस्पति ग्रह का नियंत्रण प्राप्त है। इस दिन माता कात्यायनी की पूजा अर्चना करने से बृहस्पति ग्रह की शांति होती है। सातवां दिन नवरात्रि के सातवें दिन विशेष रूप से माँ के कालरात्रि की आराधना की जाती है। देवी के इस रूप को शनि ग्रह का नियंत्रण प्राप्त है। बहरहाल इस दिन आप माता कालरात्रि की पूजा अर्चना कर शनि ग्रह की शांति कर सकते हैं। आठवां दिन नवरात्र के आठवें दिन विशेष रूप से महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन माँ के इस रूप की आराधना करने से आप राहु ग्रह दोष से मुक्त हो सकते हैं। माता के इस स्वरुप को मुख्य रूप से राहु ग्रह का नियंत्रण प्राप्त है। नौवां दिन केतु ग्रह के विपरीत प्रभावों से बचने के लिए नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन माता के इस स्वरुप का नमन कर और केतु ग्रह दोष से मुक्त हो सकते हैं।
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हिंदू धर्म में शक्ति की देवी मां दुर्गा की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल दिन मंगलवार से प्रारंभ हो रहा हैं। हिंदू पंचांग में चैत्र मास को हिंदू नववर्ष का प्रथम मास माना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है और मां दुर्गा के भक्त इस दिन पूरी आस्था के साथ घटस्थापना और जवारे बो कर नौ दिनों तक श्रद्धापूर्वक माता की पूजा करते हैं। नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां भगवती के एक स्वरुप (श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री) की पूजा की जाती है । यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रात: काल शुरू होता है । सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है । आइए जानते हैं कैसे करते हैं घट स्थापना- घटस्थापना शुभ मुहूर्त: घटस्थापना मुहूर्त – सुबह 05:58 से 10:14 Am तक घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:56 Am से 12:47 Pm घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 12, 2021 को 08:00 Am प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 13, 2021 को 10:16 Am घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करें। कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं । सामग्री: जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिटटी पात्र में बोने के लिए जौ घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल मोली (Sacred Thread) इत्र साबुत सुपारी दूर्वा कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के पंचरत्न अशोक या आम के 5 पत्ते कलश ढकने के लिए ढक्कन ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल पानी वाला नारियल नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा फूल माला विधि सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें । इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं । अब एक परत जौ की बिछाएं । इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं । अब फिर एक परत जौ की बिछाएं । जौ के बीज चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे । इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं । अब कलश के कंठ पर मोली बांध दें । कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें । कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें । कलश में थोड़ा सा इत्र डाल दें । कलश में पंचरत्न डालें । कलश में कुछ सिक्के रख दें । कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें । अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें । ढक्कन में चावल भर दें । इसके बाद नारियल पर लाल कपड़ा लपेट कर मोली लपेट दें । अब नारियल को कलश पर रखें । शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है । नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है । इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहें । ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है । अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचों बीच रख दें । अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें । "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें ।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें । धूपबत्ती कलश को दिखाएं । कलश को माला अर्पित करें । कलश को फल मिठाई अर्पित करके कलश को इत्र समर्पित करें । कलश स्थापना के साथ ही भक्त मां की पूजा-अर्चना प्रारंभ कर देता है । घटस्थापना का महत्व नवरात्रि में घटस्थापना का विशेष महत्व होता है। ये नवरात्रि का पहला दिन होता है और इस दिन से नवरात्रि का आरंभ होता है सनातन धर्म में किसी शुभ कार्य को करने से पहले कलश स्थापना करना शुभ माना जाता है और इसी कलश को शास्त्रों में भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है। इस लिए हर पूजा या मंगल कार्य की शुरुआत सर्वप्रथम गणेश जी की वंदना से की जाती है, जिसमें कलश की स्थापना पूरे विधि-विधान करने के बाद ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। चैत्र नवरात्रि शक्ति देवी मां दुर्गा का पर्व है। नौ दिनों तक अलग-अलग माताओं की पूजन विभिन्न तरीको से जैसे – अखंड दीप साधना, व्रत उपवास, दुर्गा सप्तशती व नवार्ण मंत्र का जाप करें। अष्टमी को हवन व नवमी को नौ कन्याओं का पूजन करें।
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13 अप्रैल 2021 को विक्रम संवत 2078 को हिंदू नववर्ष मनाया जाएगा. नया वर्ष लगने पर नया संवत्सर प्रारंभ होता है. शास्त्रों में कुल 60 संवत्सर बताए गए हैं. हिंदू नववर्ष 2078 पर इस बार 90 साल बाद एक अद्भुत संयोग बन रहा है. जानते है संयोग कष्ट देगा या जीवन में आनंद लेकर आएगा. संवत्सर का मतलब 12 महीने की काल अवधि है. सूर्य सिद्धांत के अनुसार, संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं. बृहस्पति हर 12 साल में सूर्य का एक चक्कर पूरा करता है. इन 60 संवत्सर यानी की 60 सालों के तीन हिस्से होते हैं. संवत्सर के पहले हिस्से को हम ब्रम्हा जी से जोड़ते हैं. इसे ब्रम्हविंशति कहते हैं. दूसरे भाग को विष्णुविंशति कहते हैं और इसके अंतिम भाग को शिवविंशति कहते हैं. संवत्सर यानी हिंदू वर्ष, प्रत्येक वर्ष का अलग-अलग नाम होता है. शास्त्रों के अनुसार, 2078 संवत्सर का नाम आनंद होगा. इसके प्रभाव से आपके जीवन में आनंद आएगा. महामारी का प्रकोप कम पड़ जाएगा. इस संवत्सर के स्वामी भग देवता हैं. इनके आगमन से लोगों के बीच खुशियां आती हैं. 13 अप्रैल को मंगलवार का दिन है और इसी दिन से प्रतिप्रदा भी इसी दिन से है तो इस संवत्सर का राजा मंगल होगा. नया विक्रम संवत 2078 वृषभ लग्न और रेवती नक्षत्र में शुरू होगा. इस बार अमावस्या और नव संवत्सर के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों मीन राशि में ठीक एक ही अंश पर रहेंगे. यानी कि मीन राशि में नया चंद्रमा उदय हो जाएगा. वृषभ राशि में मंगल और राहु दोनों ही मौजूद रहेंगे. राजा, मंत्री और वर्षा इन तीनों का अधिकार मंगल के पास है. 2078 का संवत वर्ष कहता है कि इस साल बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने वाली है, बरसात थोड़ी कम होगी. इस बार वित्त का अधिकार भी बृहस्पति के पास है तो पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक, मंगल क्रूर है और युद्ध का देवता भी है. तो इस संवत वर्ष दुर्घटना, विनाश, हिंसा, भूकंप पुलिस और एयरफोर्स बहुत ज्यादा प्रभावशाली हो जाएंगे. इस साल आगजनी की संभावना बढ़ जाएगी. शल्य चिकित्सा आधुनिक हो जाएगी. इस साल दुर्घटनाओं के मामले बहुत बढ़ जाएंगे. इस साल सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिलेगी. प्राकृतिक आपदाएं बहुत आएंगी. इस संवत वर्ष में आंधी-तूफान बहुत आएंगे लेकिन बारिश बहुत कम होगी. वहीं निर्णय सिंधू शास्त्र के अनुसार, संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा. निर्णय सिंधू के अनुसार ये सवंत 89वां संवत है और इसे अपूर्ण संवत के नाम से जाना जाएगा. प्रमादि संवत्सर अपना पूरा वर्ष व्यतीत नहीं कर रहा है. इसलिए 90वें वर्ष में पड़ने वाला संवत्सर यानी की अगला संवत्सर विलुप्त हो जाएगा. निर्णय सिंधू के अनुसार वर्तमान में इस बार विचित्र संयोग बन रहा है. ये 90 साल बाद हो रहा है कि एक संवत पूरी तरह विलुप्त रहेगा. इससे रोग, भय और राक्षस प्रवृत्ति बढ़ेगी और लोगों में अपराध करने की क्षमता ज्यादा आ जाएगी. 13 अप्रैल को शुरू हो रहे नवसंत्सर के दिन रात को 2 बजकर 32 मिनट पर सूर्य मेष राशि में आ जाएंगे. सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करते ही मेष संक्रांति शुरू हो जाएगी. ये साल की सबसे बड़ी संक्रांति मानी जाती है. संवत्सर प्रतिपदा और मेष संक्राति एक ही दिन पड़ रही है. ये संयोग 90 साल के बाद बन रहा है. कुछ विद्वानों का कहना है 13 अप्रैल से शुरू होने वाला संवत वर्ष आनंद नाम से ही जाना जाएगा. इस साल हर्ष और उल्लास बढ़ेगा.
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